Monday, January 24, 2011

तबाही की तरफदारी

तबाही की तरफदारी


दविंदर शर्मा

जैव संव‌िर्द्धत (जीएम) फसलें एक बार फिर चर्चा में है। मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अपनी पूर्ववर्ती नीति से पलटी मारकर अब सार्वजनिक रूप से जीएम फसलों को समर्थन देना शुरू कर दिया है। बहस गरमा रही है। यह उसी लाइन पर जा रही है, जिस पर शरद पवार जोर दे रहे है। इसमें हैरत की बात नहीं है। मैं देर-सबेर इसकी उम्मीद कर रहा था। आखिरकार, विकिलीक्स पहले ही खुलासा कर चुका है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन जीएम फसलों के पक्ष में राय व्यक्त कर चुके है। विकिलीक्स के एक और खुलासे में, पेरिस में अमेरिकी दूतावास ने जीएम फसलों का विरोध कर रहे यूरोप के खिलाफ वाशिंगटन को सैन्य व्यापार युद्ध छेड़ने की सलाह दी थी।

2008 में अमेरिका और स्पेन ने यूरोप में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने पर जीएम खाद्यान्न फसलों की आवश्यकता को उचित ठहराया था।?यूरोप अब भी जीएम फसलों को स्वीकार नहीं कर रहा है, ऐसे में केवल भारत ही निशाने पर है। 2010 के शुरू में भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन के व्यावसायीकरण को स्थगित कर दिया था। इसके बाद भारत पर अमेरिका ने कूटनीतिक और राजनीतिक दबाव बढ़ा दिया था। बहुराष्ट्रीय बीज उद्योग ने तेजी से कदम उठाते हुए बड़ी संख्या में पत्रकारों को अमेरिका की 'शैक्षिक' यात्रा कराई और भारत में भी जीएम फसलों के पक्ष में मीडिया अभियान छेड़ दिया। उसी समय, विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जीएम फसलों के पक्ष में राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रभावित करने के प्रयास तेज कर दिए थे। माकपा के दृष्टिकोण में बदलाव इन्हीं प्रयासों का नतीजा है। हमें कुछ ऐसे मुद्दों की पड़ताल करना बेहद जरूरी है, जो जीएम फसलों को बढ़ावा देने के शोरशराबे में गुम हो गए है।

पहली और सबसे महत्वपूर्ण दलील यह दी जाती है कि एक अरब से अधिक की आबादी वाले देश का पेट जीएम फसलें ही भर सकती है। इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी। सच्चाई इसके उलटी है। विश्व में कोई ऐसी जीएम फसल नहीं है, जो उत्पादकता को बढ़ा सके। वास्तव में, अधिकांश जीएम फसलों ने असलियत में उत्पादकता को घटाया ही है। अमेरिकी कृषि विभाग भी स्वीकार करता है कि जीएम मक्का और जीएम सोया की उत्पादकता सामान्य प्रजातियों से कम है। अगर जीएम फसलों की उत्पादकता सामान्य फसलों से भी कम है तो आश्चर्य है कि हमारे राजनेता जीएम फसलों से खाद्य सुरक्षा बढ़ने की बात क्यों कर रहे है! सच्चाई यह है कि विश्व में खाद्यान्न की कमी ही नहीं है। पृथ्वी पर 6.5 अरब लोग रहते है, जबकि खाद्यान्न का उत्पादन 11.5 अरब लोगों के लिए हो रहा है। अगर विश्व में रोजाना एक अरब से अधिक लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है तो इसका कारण खाद्यान्न की अनुपलब्धता न होकर दोषपूर्ण वितरण प्रणाली है। यही बात भारत पर भी लागू होती है, जहां एक-तिहाई आबादी उपलब्ध भोजन खरीदने की स्थिति में नहीं है, जिसे गोदामों में चूहे चट कर रहे है।

अब तक विकसित करीब सभी जीएम फसलों की विशेषता कीटरोधी होना बताया जाता है। उदाहरण के लिए बीटी कॉटन पिंक बॉलवर्म जैसे कीटों के मारने के लिए विकसित की गई, जिससे कीटनाशकों का इस्तेमाल घट जाए। यह लंबे समय तक सही सिद्ध नहीं हुआ। चीन में, बीटी कॉटन उगाने वाले किसान अब दस फीसदी अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे है।

भारत में भी, बीटी कॉटन की पैदावार में अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल होने लगा है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉटन रिसर्च, नागपुर की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 में, 640 करोड़ रुपये के कीटनाशकों का कॉटन पर छिड़काव किया गया। 2008 में यह राशि 800 करोड़ से अधिक हो गई। यहां तक कि अमेरिका में भी, जहां जीएम फसलों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है, कीटनाशकों पर खर्च 30 करोड़ डॉलर बढ़ गया है।

जीएम फसलें अपनी जड़ों के माध्यम से मिट्टी में जहरीले तत्व छोड़ती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के शोध के अनुसार इससे मिट्टी के लिए लाभदायक माइक्रोफ्लोरा को नुकसान पहुंचता है। किसानों की शिकायतें बढ़ती जा रही है कि बीटी कॉटन की हर अगली पैदावार पहले से कम हो रही है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और हरियाणा में बीटी फसल की पत्तियां खाने से पशु मर रहे है। आंध्र प्रदेश पशुपालन विभाग ने किसानों को चेतावनी जारी की है कि वे पशुओं को बीटी कॉटन के खेत में न चरने दें।

जीएम फसल कुछ ऐसे कीट भी पैदा करती है, जो किसी भी कीटनाशक से नहीं मरते। अमेरिका में, 1.5 करोड़ एकड़ जमीन पर सुपरकीट फैल चुके है। इन कीटों के फैलने से अमेरिका का जार्जिया प्रांत तेजी से बंजर होता जा रहा है। उत्तरी अमेरिका में कम से कम 30 सुपरकीट विकसित हो गए है, जो किसी भी रसायन से खत्म नहीं होते। दुनिया भर में अनेक उदाहरण है जिनसे पता चलता है कि जीएम फसल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यहां तक कि बहुराष्ट्रीय कंपनी मोंसेंटो के खुद के अध्ययन भी बताते है कि इसके कारण यूरोप में चूहों को किडनी, लिवर, पैंक्रियाज और खून की गंभीर बीमारियां हो गई है। ऑस्ट्रिया में कुछ हालिया अध्ययनों से पता चला है कि जीएम फसलों से नपुंसकता भी होती है। जिन भी वैज्ञानिकों ने जीएम फसलों के मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव पर सवाल उठाने की हिम्मत दिखाई है, उन्हें जीएम उद्योग के इशारे पर नौकरी से निकाल दिया गया।

अगर हम लोगों के हाथ में नुकसानदायक प्रौद्योगिकी सौंप देंगे तो देर-सबेर विश्व की अप्राकृतिक मौत हो जाएगी। उदाहरण के लिए सिगरेट के हर पैकेट पर स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने की चेतावनी छपी रहती है, फिर भी इसकी बिक्री बढ़ रही है। चूंकि यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है इसलिए सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर इसके इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया है। क्या यह गलत फैसला है? इसी प्रकार जीएम फसलों के इस्तेमाल करने या न करने का फैसला किसानों पर नहीं छोड़ा जा सकता। किसान ताकतवर कंपनियों के आक्रामक मार्केटिंग हथकंडों के जाल में फंस जाते है। पूरा सरकारी तंत्र, कृषि विश्वविद्यालय, कंपनियां और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा जीएम फसलों को प्रोत्साहन देने में जुटा है। किसान इनका मुकाबला नहीं कर सकते। किसानों पर दोषपूर्ण प्रौद्योगिकियां थोपने पर वे पहले ही आत्महत्या कर रहे है। हत्यारी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल न रोक कर हम और कितने किसानों की हत्या करना चाहते है?

[दविंदर शर्मा: लेखक कृषि नीतियों के विश्लेषक है

Normalcy returns in Karchana after farmers call off agitation

Normalcy returns in Karchana after farmers call off agitation




Allahabad, Jan 22 (PTI) Normalcy today returned in Karchhana tehsil after agitating farmers agreed to call off their agitation on an assurance by district administration that their demands were being taken up with authorities.



Trouble arose yesterday in the district''s Karchhana tehsil, 40 kms from the city, where farmers from at least half-a-dozen villages, whose land has been acquired by the Uttar Pradesh government for a proposed thermal power project, began staging a demonstration.



A police party asked the agitators to disperse as some of them were squatting on railway tracks affecting traffic on Delhi-Howrah route. This led to a "heated exchange" following which police resorted to "mild use of force to quell the mob" in which one person was killed and several others, including three police men, were injured.



Allahabad District Magistrate Sanjay Prasad said, "The agitating farmers agreed to call off their agitation late last night after an assurance that their demands were being taken up at the appropriate level.



"Their demands include monetary compensation at the rate of Rs 570 per square metre of land acquired, a job to one member in each family which is made to part with its land and proper housing facilities to those who might be displaced as a result of the proposed power project."

He said the district administration has sought four months'' time from the agitators.



"We have assured the agitators that the company JP Associates, which has won the bid for the proposed 1320 MW thermal power project, will not proceed with work during this period," he said.



Besides, the agitators have been given the assurance that no case will be registered in connection with yesterday''s incidents, which included torching and vandalising of a number of vehicles, disruption of rail and road traffic for almost 12 hours and clashes with police, in which an Additional SP, a Deputy SP and a constable were also injured.



The administration has also announced a compensation of Rs five lakh to the family members of Gulab Vishwakarma, who had died during the agitation though it maintained that "the death was natural, caused by a heart attack and the solatium was offered in order to pacify the agitators".



Meanwhile, the farmers in the area have reportedly decided to "peacefully carry on with a relay fast in order to check the administration from any attempts to renege on the promises that have been made".



Bhartiya Kisan Union (BKU) has condemned the police firing on agitating farmers and threatened that atrocities done on them to acquire the land against their wishes will not be tolerated.

BKU President Mahendra Singh Tikait also demanded amendment of Land Acquisition Act to prevent further confrontation with farmers.

Land was acquired earlier at a very low rate in different states, he alleged.

He announced that the BKU would stage a demonstration in Delhi on March 9 against the Land Acquisition Policy in the country.

"BKU will send a fact finding committee to the spot to investigate into the incident and will decide the future course of action after its report," Tikait said.