Sunday, July 31, 2011

भाकियू के स्थापना दिवस पर

भाकियू के स्थापना दिवस पर
Story Update : Tuesday, March 01, 2011    12:33 AM
मुजफ्फरनगर। भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने विधानसभा से लेकर संसद तक को पैनी की ठोड पर रखा। विधायक और सांसद से लेकर प्रधानमंत्रियों ने सिसौली में हाजिरी भरी। राजनीति से दूर रहने के लिए बाबा ने राज्यसभा सदस्य और मंत्री पद पर ठोकर मार दी, लेकिन जब राजनीति में आए तो दाल का गलना मुश्किल हो गया। भाकियू के राजनीतिक विंग बनाकर चुनावी रण में शामिल हुए लेकिन चुनावी नतीजे सिफर ही रहे।
मंगलवार को भाकियू के गठन के २४ साल पूरे हो रहे हैं। एक मार्च १९८७ को करमूखेड़ी बिजलीघर से फूंका गया बिगुल इतिहास बन चुका है। बीते ढाई दशक में भाकियू ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। १७ मार्च १९८७ को सिसौली में आहूत की गई भाकियू की पहली पंचायत में संगठन का पूर्णतया अराजनीतिक घोषित किया गया था। लेकिन टिकैत की मुट्ठी में लाखों किसानों को देख राजनीतिक दिग्गज उनसे नजदीकियां बनाने का जतन समय-समय पर करते रहे। नब्बे के दशक में यूपी और हरियाणा से उन्हें राज्यसभा में पद ग्रहण करने का न्यौता मिला लेकिन बाबा ने स्वीकार नहीं किया। पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा से टिकैत की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं रही। कभी उपप्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय देवीलाल ने भी टिकैत को किसान हित के लिए राजनीति में कूदने की सलाह दी थी। टिकैत ने आखिर वर्ष १९९६ में इलाहाबाद में भाकियू के राजनीतिक विंग भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन किया। भानुप्रताप सिंह के बाद रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत सिंह को इसका अध्यक्ष घोषित किया गया था। भाकिकापा आज कहां है कोई नहीं जानता। इसके बाद वर्ष २००४-०५ में दूसरे राजनीतिक विंग बहुजन किसान दल का गठन किया गया। भाकियू अध्यक्ष के पुत्र राकेश टिकैत ने खतौली विस से चुनाव लड़ा लेकिन नतीजे सिफर ही रहे। हालांकि भाकिकापा के दम पर भाकियू के राजपाल बालियान समेत कई नेता विधानसभा पहुंच गए थे जो बाद में अजीत सिंह के खास लोगों में शुमार हो गए।
इनसेट-१
किसानों को मिली नई पहचान
मुजफ्फरनगर। राजनीति विंग भले ही कोई कमाल नहीं दिखा पाए हो लेकिन भाकियू से आज भी भारी संख्या में किसान जुड़े हुए हैं। संगठन के प्रवक्ता अनिल मलिक का कहना है कि भाकियू ने किसानों को नई पहचान दी। किसानों ने सरकारी दफ्तरों में जाकर अपनी बात कहना और अपने हकों के लिए लड़ना भाकियू के दम पर ही सीखा। राजनीति में सफलता और असफलता अलग बात है।

No comments:

Post a Comment