भूमि अधिग्रहण बिल में हो सकते है बड़े ,अरुण जेटली जी ने
किसान प्रतिनिधियों के साथ बैठक में दिए संकेत---------भाकियू
वार्ता में भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा के
रास्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री नरेश सिरोही की अहम् भूमिका आज दिनांक 28 मई 2015 को भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली वित्त मंत्री भारत सरकार, के द्वारा आयोजित किसान प्रतिनिधियों की बैठक में चै0 राकेश टिकैत व अजमेर सिंह लाखोवाल(अध्यक्ष पंजाब प्रदेश) सहित रतन मान, राजबीर सिंह, धर्मेन्द्र मलिक, विजय तालान व अशोक बालियान ने भाग लिया। भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने सामाजिक प्रभाव का आकलन निजी अधिग्रहण में किसानों की सहमति, 5 साल में किसानों की जमीन न लौटाये जाने(धारा 24,2), किसानों को चार गुना मुआवजा दिये जाने का स्पष्ट उल्लेख न दिये जाने पर कडी आपत्ति जताते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक 2015 के सम्बन्ध में एक विस्तृत मांग पत्र भी सौंपा। भाकियू की तरफ से चै0 राकेश टिकैत(राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू), अजमेर सिंह लाखोवाल(अध्यक्ष पंजाब प्रदेश) व धर्मेन्द्र मलिक ने अपने विचार रखें।
भारत सरकार की ओर से केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली जी ने किसानों को आश्वस्त किया कि सरकार किसानों के विरोध में कोई कार्य नहीं करना चाहती है। किसानों को जिन-जिन बिन्दुओ पर आपत्ति हैं सभी किसान संगठन उन विषयो पर एक कमेटी का गठन कर उन बिन्दुओ पर किसान हित में परिभाषित कर अपनी सहमति बना ले। इसके बाद पुनः एक बैठक कर भारत सरकार उन बिन्दुओ को किसानों की इच्छानुसार परिभाषित करने के लिए तैयार है। जिस पर बैठक में उपस्थित किसान प्रतिनिधियो ने बहुत जल्द बैठक कर सहमति बनाकर दोेबारा बैठक करने की बात करते हुए मीटिंग को समाप्त कर दिया गया। भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर आज अरूण जेटली जी के साथ सफल बैठक के आयोजन पर भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व डी.डी किसान चैनल के सलाहकार श्री नरेश सिरोही जी का चै0 राकेश टिकैत जी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सिरोही जी हमेशा किसानों कि वकालत करते रहते है। यह बैठक सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय में आयोजित की गई थी।
भवदीय
;धर्मेन्द्र मलिक
मई २८, २०१५
श्री अरुण जेटली
वित्त मंत्री,
भारत सरकार
विषय : भूमि
अधिग्रहण बिल २०१५ पर हमारी आपति और सुझाव
आदरणीय अरुण जेटली जी,
भूमि अधिग्रहण बिल, २०१५ को
संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है, इस बात का हम स्वागत करते हैं | लेकिन दूसरी
तरफ आपकी सरकार ने तमाम विरोधों के बावजूद एक बार फिर से किसान - मज़दूर विरोधी
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाया, इस बात का हम विरोध भी करते है । मालूम हो की 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के
अंतर्गत जबरन, अनुचित और
अन्यायपूर्ण तरीके से जमीन अधिग्रहण के अनुभवों के आधार पर, विविध किसान संगठनों के लम्बे संघर्ष के बाद भूमि
अधिग्रहण, पुनर्वास और
पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में समुचित मुआवजा और
पारदर्शिता का अधिकार संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था । एक दशक तक चले
अभूतपूर्व देशव्यापी परामर्श, संसद में और बीजेपी के नेतृत्व वाली दो स्थायी समितियों में बड़े पैमाने पर बहस
के बाद ही 2013 का यह भूमि अधिग्रहण अधिनियम बना, उस वक्त वर्तमान लोकसभा सभापति और स्थायी समिति की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के
साथ बीजेपी तहेदिल से अधिनियम के समर्थन में थी, और खुलकर इस कानून के प्रावधानों का समर्थन कर रही थी
| आपने भी उस समय विपक्ष नेता के तौर पर बहुत सारे प्रावधानों को सहमती दी थी | पर
आज अब एक झटके में लोकतान्त्रिक ढांचे को अनदेखा करके, 2013 के अधिनियम के सभी लाभों को खत्म करते हुए, 1894 के कानून पर वापस आने वाला पह्ला
अध्यादेश आपकी सरकार 31 दिसम्बर को लाई |
हम मानते हैं की 2015 का भूमि अध्यादेश / अधिनियम पूरी तरह से, समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, का और अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सालों के
संघर्ष का मजाक है । इससे, आपकी सरकार लोगों के हितों की पूरी अनदेखी करते हुए, किसी भी कीमत पर कॉर्पोरेट के हितों का विस्तार करने
के अपने संकल्प की पुष्टि ही हुइ है, और साथ ही इसमें इस बात का संकेत भी मिलता है कि मौजूदा कॉर्पोरेट-सरकार
संबंधों में किसी भी तरह के पारम्परिक लोकतान्त्रिक और भारतीय संविधान के ढांचे से
रुकावट नहीं आने वाली है.
इस अधिनियम के
प्रावधान किसानों की बिना अनुमति के उसकी ज़मीन छीनकर
कम्पनियों को दे देंगे और दूसरी तरफ बहु फसली
ज़मीन या फिर ज़रुरत से ज्यादा ज़मीन का अधिग्रहण भी social
impact assessment के प्रावधान को हटाने के कारण लागू हो जाएगा
|
सरकार ने अध्यादेश में जो संशोधन भी लायें है वह सिर्फ कागजी ही दिखता है क्योंकि वह मूल रूप
से २०१३ के कानून के मूल उद्देश्यों को खारिज करता है. खेती की ज़मीन का हस्तांतरण, खाद्य सुरक्षा की देखी, लोगों की जीविका, जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण पर रोक, अधिग्रहित भूमि को किसानों को वापसी आदि जैसे मुद्दों को २०१३
का कानून कुछ हद्द तक सम्बोधित करता था, पर वह भी ख़तम कर दिया गया है |
यह सरकार भी जानती है कि जमीनें पीढ़ी दर
पीढ़ी आजीविका मुहैय्या कराती हैं और मुआवजा कभी भी वैकल्पिक आजीविका नही दे सकते
हैं ! यह सभी जानते हैं कि जब भारत में कृषि
योग्य ज़मीनें व किसान नही बचेंगें तो देश की खाद्य संप्रभुता समाप्त हो जायेगी और
देश खाद्य के मामले ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर हो जाएगा, तथा
साथ साथ ज़मीन से जुड़े हुए भूमिहीन किसान और खेत मज़दूर तथा ग्रामीण दस्तकार
,छोटे व्यापारी देश के नक़्शे से ही गायब हो जायेंगे। उसके बाबजूद भी जमीनों के चार गुना मुआवजा देकर अधिग्रहण की बात कर रही
आपकी सरकार अपने
आप को किसानो का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं, जबकि सच्चाई तो यह है कि
भाजपा शासित राज्यों की सरकारे अति उपजाऊ ज़मीन का भी मुआवजा मात्र दो से ढाई गुना
पर निपटा रही हैं |
हम आपके सामने कुछ सुझाव रखना
छाते हैं और बतलाना चाहते हैं की सरकारी संशोधन सिर्फ दिखावे हैं, आज जरूरत है की
कृषि संकट को दूर किया जाए और खेती एक जीविका का उत्तम साधन बन सके लोगों के लिए |
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