Monday, June 8, 2015

Bhartiya kisan union feedback to joint committee of parliament on the land acquisition amendments bill 2015






अध्यक्ष/सदस्य
संयुक्त संसदीय समिति भूमि अधिग्रहण बिल 2015
लोकसभा सचिवालय कमरा न0 306 तीसरा फ्लोर
संसद भवन एनेक्सी नई दिल्ली।


विषयः- भूमि अधिग्र्रहण बिल 2015 पर भारतीय किसान यूनियन की आपत्ति और सुझाव।

आदरणीय अध्यक्ष/सदस्य

भूमि अधिग्रहण बिल, 2015 को सरकार ने देश के हर कोने से उठ रही विरोधी आवाज व् आन्दोलन को देखते हुए संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है | 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अंतर्गत जबरनअनुचित और अन्यायपूर्ण तरीके से जमीन अधिग्रहण के अनुभवों के आधार परविविध किसान संगठनों के लम्बे संघर्ष के बाद भूमि अधिग्रहणपुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था । एक दशक तक चले अभूतपूर्व देशव्यापी परामर्शसंसद में और बीजेपी के नेतृत्व वाली दो स्थायी समितियों में बड़े पैमाने पर बहस के बाद ही 2013 का यह भूमि अधिग्रहण अधिनियम बनाउस वक्त वर्तमान लोकसभा सभापति और स्थायी समिति की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के साथ बीजेपी ने भी तहेदिल से अधिनियम के समर्थन में थीऔर खुलकर इस कानून के प्रावधानों का समर्थन कर रही थी |

हम मानते हैं की 2015 का भूमि अध्यादेश / अधिनियम पूरी तरह सेसमुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार भूमि अधिग्रहणपुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, का और अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सालों के संघर्ष का मजाक है ।
इस अधिनियम के प्रावधान किसानों की बिना अनुमति के उसकी ज़मीन छीनकर कम्पनियों को दे देंगे और दूसरी तरफ बहु फसली ज़मीन या फिर ज़रुरत से ज्यादा ज़मीन का अधिग्रहण भी social impact assessment के प्रावधान को हटाने के कारण लागू हो जाएगा | 

सरकार ने अध्यादेश में जो संशोधन भी लायें है वह सिर्फ कागजी ही दिखता है क्योंकि वह मूल रूप से २०१३ के कानून के मूल उद्देश्यों को खारिज करता है. खेती की ज़मीन का हस्तांतरण, खाद्य सुरक्षा की अनदेखी, लोगों की जीविका, जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण पर रोक, अधिग्रहित भूमि को किसानों को वापसी आदि जैसे मुद्दों को २०१३ का कानून कुछ हद्द तक सम्बोधित करता था, पर वह भी ख़तम कर दिया गया है |

यह सरकार भी जानती है कि जमीनें पीढ़ी दर पीढ़ी आजीविका मुहैय्या कराती हैं और मुआवजा कभी भी वैकल्पिक आजीविका नही दे सकते हैं ! यह सभी जानते हैं कि जब भारत में कृषि योग्य ज़मीनें व किसान नही बचेंगें तो देश की खाद्य संप्रभुता समाप्त हो जायेगी और देश खाद्य के मामले ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर हो जाएगा ,तथा साथ साथ ज़मीन से जुड़े हुए भूमिहीन किसान और खेत मज़दू णर तथा ग्रामीर, दस्तकार ,छोटे व्यापारी देश के नक़्शे से ही गायब हो जायेंगे। उसके बाबजूद भी जमीनों के चार गुना मुआवजा देकर अधिग्रहण की बात कर रही सरकार अपने आप को किसानो का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं, जबकि सच्चाई तो यह है कि भाजपा शासित राज्यों की सरकारे अति उपजाऊ ज़मीन का भी मुआवजा मात्र दो से ढाई गुना पर निपटा रही हैं |  

समिति के  सामने भारतीय किसान यूनियन  कुछ सुझाव रखना चाहती  हैं और बतलाना चाहते हैं की सरकारी संशोधन सिर्फ दिखावे हैं, आज जरूरत है की कृषि संकट को दूर किया जाए और खेती एक जीविका का उत्तम साधन बन सके लोगों के लिए |






संशोधन
 मूल अधिनियम
1.     
अध्यादेश में  परियोजनाओं की एक विशेष श्रेणी (नया सेक्शन 10अ) बनाई गई है जिसमें सहमति लेने, सामाजिक प्रभाव आंकलन की जरुरत, विशेषज्ञ समूह से  समीक्षा कराने, बहुफसलीय/ खेती की जमीन लेने की  छूट है.  

इस विशेष श्रेणी के पांच विषय/आइटम हैं: औद्योगिक गलियारे  और आधारभूत सुविधाओं वाली परियोजनाएं जिनमें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की परियोजनाएं शामिल हैं. अधिकांश अधिग्रहण इन्हीं दो श्रेणियों के अंतर्गत होने का असर यह होगा कि 2013 के मूल कानून के सुरक्षा उपाय पूरी तरह ख़त्म  हो जायेंगे.

‘सोशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर’ को इस नई श्रेणी में शामिल किया गया था और बाद में सरकार द्वारा ही इसे वापस ले लिया गया.
2013 के कानून में इस तरह का कोई क्लॉज़ नहीं था. ये सभी गतिविधियाँ अध्याय 2 और 3 के लिए निर्धारित  प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आवश्यक थीं.

सेक्शन 2(2) में परियोजना की मंजूरी हेतु (70-80%) प्रभावित परिवारों से सहमति लेना आवश्यक था.

एक नया प्रावधान जोड़ दिया गया है इससे सेक्शन 10अ से उन सभी निर्धारित गतिविधियों को हटा दिया गया है जो  सहमति के दायरे में आती थीं.
2.     
10अ की नई श्रेणी में बचाव के नए सेक्शन जोडे गए हैं:  अध्यादेश के जरिये नये सेक्शन में दो नए प्रावधान सरकार ने जोड़े.

मूलतः इसके जरिये सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि परियोजना के लिए ली जाने वाली जमीन के लिए कम से कम सवालात हों. दूसरा प्रावधान सरकार को बंजर जमीन का सर्वेक्षण करने का आदेश देता है

2013 के कानून में मौजूद सामाजिक प्रभाव आंकलन को  असावधानी से  जोड़ा गया है.

परियोजनाओं को सामाजिक प्रभाव आंकलन प्रक्रिया के दायरे से बाहर रखने के लिए सरकार सामाजिक प्रभाव आंकलन की निर्धारित छह शर्तों में से एक शर्त को ही शामिल किया.     

सामाजिक प्रभाव आंकलन को लागु करने की बजाय सरकार ने उसके प्रति उठने वाली चिंताओं को दबाने के लिए इसे सूक्ष्म और तुच्छ बना दिया.
3.     
पहले के क्लॉज़ में महत्वपूर्ण संशोधन सेक्शन 24(2) शामिल किया गया. सेक्शन में संशोधन करके मुकदमेबाजी के समय को बाहर रखा गया जहाँ स्थगन आदेश की अवधि को पूरा करना आवेदक के लिए जरूरी हो.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मुआवजे की परिभाषा को अमान्य घोषित कर दिया गया.

2013 का कानून सेक्शन 24(2) जमीन पे सीधा कब्जा न होने या मुआवजा न दिए जाने की स्थिति में जमीन वापस लौटाने की अनुमति देता है.

अब आवेदकों के लिए नई आवश्यकताओं को पूरा करना और भी मुश्किल कर दिया गया.

कानून यह बताता कि देय मुआवजे का क्या आशय है इसे अदालतों पर छोड़ दिया गया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुआवजे से आशय है कोर्ट में या सीधा लाभार्थी के खाते में पैसे जमा करना.  
4.     
नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही मंजूरी के बाद ही हो सकेगी. नए संशोधन में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत सरकार से अनुमति मिलने के बाद ही कार्यवाही हो सकेगी.

2013 कानून की धारा 87 में अधिकारीयों को कानून को लागू करने के लिए ज्यादा जवाबदेह बनाया गया  और उल्लंघन किये जाने की स्थिति में दंड का प्रावधान भी है. किसी प्राधिकरण से पूर्व अनुमति लेने की जरुरत नहीं है.

5.     
उपयोग न हुई जमीन को लौटाने के प्रावधान को कमजोर किया गया.  अध्यादेश में संशोधन करके पांच साल की अवधि को खत्म करके ‘परियोजना की स्थापना की निर्धारित अवधि या पांच साल जो भी बाद में हो’ को किया गया.
2013 के कानून की धारा 101 में पांच साल तक जमीन का इस्तेमाल न होने पर वापस करने (जमीन के मालिक को या राज्य भूमि बैंक) की बात कही गयी.
6.     
सरकार को दो से पांच साल में कानून लागू करने का विशेष अधिकार. इससे कानून की व्याख्या करने के लिए जरुरी किसी भी कदम को सरकार ले सकती है.   
2013 के कानून की धारा 113 में सरकार कानून पास होने के दो साल के बाद उसे लागू करने के लिए आवश्यक कोई भी कदम ले सकती है.
7.     
निजी संस्था’ की परिभाषा को विस्तारित किया गया ताकि स्वामित्व, साझेदारी, गैर-लाभ का संगठन या कोई अन्य संस्था को शामिल किया जा सके. इसका मतलब है कि ये संस्थाएं सरकार से सार्वजानिक उद्देश्य के लिए जमीन अधिग्रहित करने के लिए अनुरोध कर सकती हैं. 

2013 का कानून या तो सरकारी संस्थाओं या सरकार के जरिये निजी कम्पनियों के लिए ही जमीन के अधिग्रहण की इजाजत देता है. अधिग्रहण का मतलब यह बिलकुल भी नहीं कि किसी भी संस्था के लिए निर्दयतापूर्वक जमीन ली जाये.
8.     
औद्योगिक गलियारों का विस्तार: सरकार ने औद्योगिक गलियारे के विस्तार की परिभाषा में नया संशोधन किया है अब औद्योगिक गलियारे में सड़क या रेलवे लाईन के एक या दोनों तरफ एक एक किलोमीटर जमीन लेने की बात कही गयी है   
 यह परियोजना गतिविधियों के वृहद विस्तार है जो अध्यादेश के जरिये पहले ही सरकार पेशा कर चुकी है.

सामाजिक प्रभाव आंकलन का भी यह उल्लंघन है जिसमें परियोजना के लिए कम से कम जमीन के विस्तार की बात कही गयी .

इसका बेहतरीन उदाहरण है यमुना एक्सप्रेस-वे, जिसमें एक्सप्रेस-वे परियोजना  के किसी भी तरफ अतिरिक्त जमीन  ली गई और बाद में उसे उत्तर प्रदेश में जेपी ग्रुप को दे दिया गया.
9.     
खेतिहर मजदूर के लिए अनिवार्य रोजगार . एक नया सेक्शन डालकर खेतिहर मजदूर के लिए रोजगार अनिवार्य किया गया.
यह संशोधन गुमराह करने वाला, सतही और एकपक्षीय है. 2013 का कानून दूसरी अनुसूची के आइटम 4 के तहत अनिवार्य रोजगार देता है.

वास्तव में यह और अन्य लाभ, बड़ी संख्या में भूमिहीनों को दिए जाते जिनकी आजीविका प्रभावित होगी न कि सिर्फ खेतिहर मजदूर को (जिन्हें प्रभावित परिवार की श्रेणी में रखा गया ). 

यह संशोधन संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है क्योंकि यह  स्पष्ट किये बिना एक अलग तरह की प्रजाति बनाता है.
10.  
नया सेक्शन 67: अर्धन्यायिक प्राधिकरण अब भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्वसन प्राधिकरण के रूप में  जाना जायेगा जो उस जिले में सुनवाई करेगा, जहाँ अधिग्रहण किया जा रहा हो.

इस संशोधन की जरूरत नहीं थी क्योंकि एलएआरआर प्राधिकरण एक स्वतंत्र निकाय है जो स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता है.

हालाँकि, वास्तविक रूप में यह एलएआरआर प्राधिकरण की संरचना या कार्यों में कमी नहीं कर सका.


भारतीय किसान यूनियन आशा करती है कि समिति को दिए गए सुझावों पर गंभीरता से चिंतन करते हुए अपनी राय में शामिल कर सरकार को देगी |  |   
                                            भवदीय   
चौ.नरेश टिकैत                                                      चौ युधवीर सिंह   
(राष्ट्रीय अध्यक्ष )                                               (राष्ट्रीय महासचिव )



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