Wednesday, June 10, 2015

जब बाबा टिकैत के हुक्के की गुडगुडाहट से हिलती थी सरकार

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जब बाबा टिकैत के हुक्के की गुडगुडाहट से हिलती थी सरकार

May 15, 2015
आज चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की चौथी पुण्यतिथि हैं। ‘चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत’ पश्चिमी यूपी का एक ऐसा नाम हैं जो राजनीतिज्ञ नहीं थे , पर राजनीति में किसानों की आवाज और पहचान थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर जगह अलग-अलग रूप से उनको श्रद्धांजली दी जा रही हैं। उनके जीवन पर प्रकाश डालती एक रिपोर्ट:

पश्चिमी  उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए 2 चेहरे ऐसे हैं जो अविस्मरणीय हैं। चौधरी चरण सिंह अगर किसानों के राजनीतिक मसीहा थे तो चौधरी टिकैत प्रदेश के किसानों के आम मसीहा थे। महेंद्र  सिंह टिकैत ने जीवन भर किसानों के हितों का संघर्ष जारी रखा। एक वक्त वह भी था, जब वोट क्लब हुक्का क्लब में बदल गए थे। टिकैत ने राजनीति को प्रभावित करते हुए भी खुद को हमेशा इससे दूर रखा। टिकैत पिछले क़रीब 25 सालों से किसानों की समस्याओं को जोर शोर से उठाया  और विशेष कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट किसानों में उनकी साख थी।उनका दल “भारतीय किसान यूनियन” एक गैर राजनीतिक दल हैं। 

चौधरी टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जिला के सिसौली गाँव में 6 अक्टूबर सन 1935 ई. को स्व.चौधरी चौहल सिंह के घर हुआ था। इनके पिता  जाटों की बालियान खाप के मुखिया और अपने क्षेत्र के सम्मानित व्यक्ति थे। सन 1943 ई. में मात्र 6 साल की उम्र में अपने पिता के देहांत के बाद चौधरी टिकैत अपनी खाप की गद्दी संभाली। किसी भी खाप के मुखिया को खाप के बाकी लोग “बाबा” कहते हैं। बाबा शब्द जाट समाज में सम्मान का प्रतीक हैं। इस प्रकार चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत “बाबा टिकैत” भी कहलाते हैं। 

सन 1986 ई. जब किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का देहांत हुआ तो  चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानों की आवाज बनकर उभरे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान उनमे अपना मसीहा देखने लगे। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसानों के बीच बढ़ते असर का अनुमान सरकार को तब हुआ जब टिकैत ने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था।इसी आंदोलन के दौरान एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था।mt2
इस घटना के बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने टिकैत की ताकत को पहचाना और खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और राहत दी। इसके बाद से ही टिकैत पूरे देश में घूम घूमकर किसानों के लिए काम किया। उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा और कई बार राजधानी दिल्ली में आकर भी धरने प्रदर्शन किए।

टिकैत ने चौधरी साहब के बाद मंद पड़े किसान आन्दोलन को नयी धार दी और ऐसी गति प्रदान की, कि राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक किसानों की ताक़त के आगे नतमस्तक हो गयी। जब भी किसानों के मुद्दे पर सरकार से लोहा लेने की बात आई, चौधरी टिकैत हमेशा आगे रहे। सन 1988 का मेरठ मार्च हो या 110 दिन लम्बा चलने वाला रजबपुर सत्याग्रह हो। बाबा टिकैत ने सरकार की नींव हिलाकर रख दी। 

बाबा टिकैत ने किसानों की उन समस्याओं को उठाया जो सरकार को बहुत छोटी लगती थी, जैसे बिजली, पानी, खाद इत्यादि। चौधरी टिकैत ने हमेशा किसानों के हित को सर्वोपरि रखा चाहे वो किसान की काश्तकारी से जुड़े मुद्दे हो या भूमि अधिग्रहण का मुद्दा। टिकैत खेती में कॉर्पोरेट संस्कृति के महाविरोधी थे। भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर टिकैत कहते थे कि
” किसान का रोजी रोटी का सवाल सिर्फ ज़मीन से हैं। जरूरत में तो हाथ की रोटी भी दी जा सकती हैं पर जोर जबरदस्ती से कोई किसान की ज़मीन नही ले सकता। अधिग्रहण के क़ानून में बदलाव  होना चाहिए कि ज़मीन देने में किसान ख़ुशी से रजामंद हो और उसे अपनी ज़मीन की वाजिब कीमत मिले जिससे उसका और उसके बच्चों का भविष्य सुधर सके।”

चौधरी टिकैत ने किसानों के लिए बहुत सी लड़ाई लड़ी हैं, लेकिन कभी सरकार के  अन्याय के सामने घुटने नहीं टेके। यह बाबा टिकैत का ही दम-ख़म था कि मुख्यमंत्री और मंत्री दिल्ली और लखनऊ से निकलकर उनके दरवाजे पर ख़ुद सिसौली आते थे। वह किसान नेताओं और किसान दलों की एकजुटता के पक्षधर थे। कई बार ऐसे मौके आये  कि उन्होंने सभी किसान नेताओं को एक मंच पर इक्कठा किया। मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री चौधरी टिकैत के हुक्के की गडगडाहट से सभी भली भांति परिचित थे।  

बाबा टिकैत ने सिर्फ किसानों या जाटों के मुद्दे ही नहीं उठाये बल्कि वह क्षेत्र में सामजिक एकता के भी पक्षधर थे। सन 1989 में भोपा क्षेत्र की मुस्लिम युवती नईमा के इन्साफ के लिए उनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। 

अपने आंदोलनों के चलते कई बार चौधरी टिकैत जेल भी गए पर उनकी ताक़त कम होने की बजाय हमेशा बढती ही रही और सरकार को हमेशा उनके आगे झुकना पड़ा। आन्दोलन के साथ ही साथ टिकैत को कई बार आरोपों और विवादों का सामना भी करना पड़ा पर अपने करिश्माई व्यक्तित्व के कारण उनके विरोधियों को हमेशा पीछे हटना पड़ा।

इतने बड़े किसान नेता टिकैत सरल स्वभाव के थे और अपनी देहाती शैली के कारण क्षेत्र में उनकी अलग पहचान थी। कई बार तो उनकी सरलता के कारण उन्हें विवादों में  रहना पड़ा। सन 2008 में मायावती से हुए विवाद से जहाँ वह राष्ट्रीय मीडिया और सरकार के निशाने पर आ गये थे वही उनके समर्थकों के अपार समर्थन से वह न सिर्फ पूरे मामले से बाहर आये बल्कि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को पीछे हटना पड़ा था। 

सन 2010 में टप्पल में किसानों की भूमि अधिग्रहण को लेकर लड़ी गयी लड़ाई उनकी अंतिम लड़ाई थी। 76 साल की उम्र में केंसर से पीड़ित होते हुए भी बाबा टिकैत अंतिम दिनों तक टप्पल में किसानों के संघर्ष में कदम से कदम मिलते रहे। 15 मई 2011 में मुज़फ्फरनगर में बाबा टिकैत का देहांत हो गया। 

उनकी मृत्यु से उत्तर प्रदेश के किसानों का मसीहा छिन गया और क्षेत्र में किसान की आवाज बुलंद करने वाला कोई नहीं रहा।  आज क्षेत्र का किसान अपने वजूद की तलाश में प्राकृतिक और राजनीतिक हर ओर से छला जा रहा हैं और आत्महत्या करने को मजबूर है। अगर आज चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत होते तो क्या किसान इस कगार पर खड़े होते? 

शालिनी चौधरी 

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