बिहार का कृषि क्षेत्र खत्म होने के कगार पर : राकेश टिकैत
बोले किसान नेता
बिहार में भी बड़े किसान आंदोलन का वक्त आ गया
बिहार में मंडी कानून लागू नहीं होने से किसानों का हो रहा नुकसान
जाति नहीं किसानों की स्थिति का आंकलन होना ज़रूरी
कोई व्यापारी किसान की जाति-धर्म देखकर नहीं खरीदता फसल
-भूमि अधिग्रहण के तहत किसानों को मौजूदा बाजार दर पर मुआवजा मिले
- पांच साल पुरानी अधिसूचना दर पर हो रहे भुगतान का विरोध करेंगे
बिहार के तीन दिवसीय दौरे पर कई पंचायतों को करेंगे संबोधित
पटना। प्रेस विज्ञप्ति
बिहार में किसान के हालात बद से बदतर होते जा रहे है। प्रदेश में कृषि क्षेत्र खत्म होने की कगार पर है। किसानों को बचाने के लिए प्रदेश में बाजार समिति बहाल करनी होगी। हम लोग विकास के विरोध में नहीं हैं, लेकिन किसानों को तबाह कर तरक्की नहीं हो सकती है। बिहार में मंडी कानून लागू ने होने का खामियाजा यहां के किसान भुगत रहे हैं। भूमि अधिग्रहण के तहत पांच साल पुरानी अधिसूचना पर किसानों को भुगतान कर जबरन जमीनों को हड़पने का काम किया जा रहा है। किसानों के लिए आंदोलन करना होगा वरना उनकी जमीन बिना वजह लुटती रहेगी। अब बिहार में आंदोलन का वक्त आ गया है।
ये बातें भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने शनिवार को बिहार की राजधानी पटना पहुंचने पर प्रेस वार्ता के दौरान कहीं। वे बिहार के तीन दिवसीय दौरे पर हैं और कई जिलों में किसान पंचायत को संबोधित करेंगे। उन्होंने कहा कि बिहार के किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। यहां का किसान दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने को मजबूर है। इसलिए बिहार में बड़े किसान आंदोलन की जरूरर है।
राकेश टिकैत ने कहा कि हम लोगों का मकसद सिर्फ़ खेतों में काम कर रहे किसानों को फसलों का सही दाम दिलवाना है। जाति को लेकर हमारी चिंता बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि कोई भी व्यापारी किसानों की ज़ात देखकर ज़्यादा भुगतान नहीं कर देता है। फसल पकने के बाद कोई नहीं बता सकता कि किस जाति विशेष की ज़मीन पर फसल की पैदावार हुई है। इसलिए जाति नहीं किसानों कि स्थिति हम लोगों के लिए ज़रूरी है।
बिहार से हजारों टन धान बाहर भेजा जा रहा है, उसका ख़रीदार कौन है, कहां बेचा जा रहा है। किसी को कोई पता नहीं। वह कम दाम पर बिचौलियों के हाथों धान बेचने को मजबर है। यहां किसी भी किसान को एमएसपी नहीं मिल रही है। पूरे देश में एमएसपी गारंटी कानून बनना चाहिए।
उन्होंने कहा कि देशभर के मक्का किसानों को अभी 5 हज़ार करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। बिहार के किसान दूसरे प्रदेशों में जाकर मज़दूरी करने पर मजबूर हैं। प्रदेश के लोगों को अपनी ही जमीनें और फसल बचाने के लिए संघर्ष करने की ज़रूरत है। बिहार में किसानों के लिए आंदोलन ज़रूरी है। कृषि रोड मैप के बारे में सरकार को बताना चाहिए कि किस मद में कितने रुपये लगे हैं। कौन सी योजनाएं किसानों के लिए चलाई जा रही हैं और धरातल पर उनका फायदा क्या किसानों को हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह बेहद शर्म की बात है कि बिहटा में किसान 16 साल से धरना दे रहे हैं। उद्योग लगाने के नाम पर उनकी ज़मीन ले ली गई, लेकिन आज तक कोई उद्योग नहीं लगा। इसके लिए सरकार को उचित मुआवज़ा देना होगा। इस बाबत किसान जहां-जहां आंदोलन करेंगे, हम उनका साथ देंगे और आंदोलन को और मजबूत करने की दिशा में काम करेंगे।