Tuesday, February 22, 2011

अभी हिम्मत नहीं हारी है’

अभी हिम्मत नहीं हारी है’


जरूरत पड़ी तो चारपाई के साथ भी जाऊंगा :टिकैत

भाकियू सुप्रीमो चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बीमार होने के बावजूद उनका जोश और संघर्ष करने का जज्बा कायम है। शरीर की चारपाई से जैसे दोस्ती गई है, मगर बुलंद आवाज आज भी सरकारों के कान खडे़ कर देने वाली है। बेबाक शैली से वह किसानों के हक की लड़ाई लड़ने को बेचैन हैं। अफसोस का दर्द भी चुभता है, जो लंबे संघर्ष के बावजूद उनके सपने पूरे नहीं होने से उभरा है। खुश होते हैं किसानों की जागृति पर, जो आज हक के लिए लड़ना सीख गए हैं। अमर उजाला से खास मुलाकात में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत से पूछे गए कुछ सवाल, जिसमें उनका जोश और दर्द उभरकर सामने आया।

सपने जो देखे थे, रह गए अधूरे

जो सपने संघर्ष के समय देखे थे, वह पूरे नहीं हो सके। आज भी किसान परेशान हैं। बढ़ती महंगाई के हिसाब से किसानों को फसलों का उचित दाम नहीं मिलता। खाद, बिजली, पानी और अन्य किसानों की जरूरत वाले उत्पादों पर हर साल कई गुना दाम बढ़ जाता है, मगर, अन्नदाता का भला नहीं किया जा रहा है। किसानों के हित में ऐसी नीति बननी चाहिए, जो हर साल बढ़ती महंगाई के हिसाब से लागू हो सके।

किसान तो बर्बाद ही हो जाएगा

आनंद प्रकाश

देश के भविष्य के बारे में क्या कहेंगे

हमारी संस्कृति बिगड़ रही है। अश्लीलता बढ़ती जा रही है और विदेशी कंपनियों ने भारत में जाल बिछा दिया है। चीन ने तो पूरा बाजार ही कब्जे में ले लिया है, ऐसे हालात से तो देश का बेड़ा गर्क हो जाएगा। भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई हैं कि खेलों से लेकर सेना और विकास कार्यों में तो आधे से ज्यादा धनराशि भ्रष्टाचारियों के गले में उतर रही है।

किसान आज संगठित क्यों नहीं
अपनी ढपली अपना राग बना रक्खा है। संघर्ष की शुरुआत में जिस तरह किसान एकजुट हुआ था, अब वैसी स्थिति नहीं है। किसी को जाति के नाम पर बांट दिया, तो किसी को लालच दिखाकर। राजनीतिक लोगों ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किसानों की शक्ति को कमजोर किया है। किसानों को सियासी चालों से बचना होगा।

अब किसानों के लिए क्या कर सकते हैं

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मैं तो अब भी संघर्ष के लिए तैयार हूं। शरीर साथ नहीं दे रहा, पर हिम्मत नहीं हारी है। शेर बूढ़ा जरूर हो जाता है, मगर शिकार करना नहीं भूलता। शरीर अस्वस्थ होने के बावजूद भी मैं किसान हित में संघर्ष के लिए तैयार हूं और जहां भी मेरी जरूरत पड़ेगी, वहां मौजूद रहूंगा। चाहे चारपाई के साथ ही वहां क्यूं ना जाना पड़ै।

संघर्ष की शुरूआत कैसे हुई।

तंग आए, जंग आए। उस वक्त के हालात ने किसानों को मजबूर किया। सरकारी दफ्तर में चपरासी भी अंदर नहीं घुसने देता था। मुझे ईश्वर ने वह शक्ति दे दी, जिसने आविष्कार के लिए प्रेरित किया। बस वहीं से मन में ठान ली कि किसानों के हित में जीवन समर्पित कर देना है।

संघर्ष में क्या खोया, क्या पाया

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खोया तो कुछ नहीं, पर किसानों को जागृति मिल गई। आज किसान इतना सक्षम है कि अपनी आवाज उठा सकता है। बिजली, पानी और अन्य समस्याओं के लिए किसान सरकारी दफ्तरों में आसानी से पहुंच जाते हैं। यही मेरे संघर्ष भरे जीवन की अमूल्य निधि है।

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