Wednesday, June 24, 2015
Wednesday, June 10, 2015
जब बाबा टिकैत के हुक्के की गुडगुडाहट से हिलती थी सरकार
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जब बाबा टिकैत के हुक्के की गुडगुडाहट से हिलती थी सरकार
May 15, 2015
आज चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की चौथी पुण्यतिथि हैं। ‘चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत’ पश्चिमी यूपी का एक ऐसा नाम हैं जो राजनीतिज्ञ नहीं थे , पर राजनीति में किसानों की आवाज और पहचान थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर जगह अलग-अलग रूप से उनको श्रद्धांजली दी जा रही हैं। उनके जीवन पर प्रकाश डालती एक रिपोर्ट:
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए 2 चेहरे ऐसे हैं जो अविस्मरणीय हैं। चौधरी चरण सिंह अगर किसानों के राजनीतिक मसीहा थे तो चौधरी टिकैत प्रदेश के किसानों के आम मसीहा थे। महेंद्र सिंह टिकैत ने जीवन भर किसानों के हितों का संघर्ष जारी रखा। एक वक्त वह भी था, जब वोट क्लब हुक्का क्लब में बदल गए थे। टिकैत ने राजनीति को प्रभावित करते हुए भी खुद को हमेशा इससे दूर रखा। टिकैत पिछले क़रीब 25 सालों से किसानों की समस्याओं को जोर शोर से उठाया और विशेष कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट किसानों में उनकी साख थी।उनका दल “भारतीय किसान यूनियन” एक गैर राजनीतिक दल हैं।
चौधरी टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जिला के सिसौली गाँव में 6 अक्टूबर सन 1935 ई. को स्व.चौधरी चौहल सिंह के घर हुआ था। इनके पिता जाटों की बालियान खाप के मुखिया और अपने क्षेत्र के सम्मानित व्यक्ति थे। सन 1943 ई. में मात्र 6 साल की उम्र में अपने पिता के देहांत के बाद चौधरी टिकैत अपनी खाप की गद्दी संभाली। किसी भी खाप के मुखिया को खाप के बाकी लोग “बाबा” कहते हैं। बाबा शब्द जाट समाज में सम्मान का प्रतीक हैं। इस प्रकार चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत “बाबा टिकैत” भी कहलाते हैं।
सन 1986 ई. जब किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का देहांत हुआ तो चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानों की आवाज बनकर उभरे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान उनमे अपना मसीहा देखने लगे। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसानों के बीच बढ़ते असर का अनुमान सरकार को तब हुआ जब टिकैत ने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था।इसी आंदोलन के दौरान एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था।
इस घटना के बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने टिकैत की ताकत को पहचाना और खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और राहत दी। इसके बाद से ही टिकैत पूरे देश में घूम घूमकर किसानों के लिए काम किया। उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा और कई बार राजधानी दिल्ली में आकर भी धरने प्रदर्शन किए।
टिकैत ने चौधरी साहब के बाद मंद पड़े किसान आन्दोलन को नयी धार दी और ऐसी गति प्रदान की, कि राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक किसानों की ताक़त के आगे नतमस्तक हो गयी। जब भी किसानों के मुद्दे पर सरकार से लोहा लेने की बात आई, चौधरी टिकैत हमेशा आगे रहे। सन 1988 का मेरठ मार्च हो या 110 दिन लम्बा चलने वाला रजबपुर सत्याग्रह हो। बाबा टिकैत ने सरकार की नींव हिलाकर रख दी।
बाबा टिकैत ने किसानों की उन समस्याओं को उठाया जो सरकार को बहुत छोटी लगती थी, जैसे बिजली, पानी, खाद इत्यादि। चौधरी टिकैत ने हमेशा किसानों के हित को सर्वोपरि रखा चाहे वो किसान की काश्तकारी से जुड़े मुद्दे हो या भूमि अधिग्रहण का मुद्दा। टिकैत खेती में कॉर्पोरेट संस्कृति के महाविरोधी थे। भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर टिकैत कहते थे कि
” किसान का रोजी रोटी का सवाल सिर्फ ज़मीन से हैं। जरूरत में तो हाथ की रोटी भी दी जा सकती हैं पर जोर जबरदस्ती से कोई किसान की ज़मीन नही ले सकता। अधिग्रहण के क़ानून में बदलाव होना चाहिए कि ज़मीन देने में किसान ख़ुशी से रजामंद हो और उसे अपनी ज़मीन की वाजिब कीमत मिले जिससे उसका और उसके बच्चों का भविष्य सुधर सके।”
चौधरी टिकैत ने किसानों के लिए बहुत सी लड़ाई लड़ी हैं, लेकिन कभी सरकार के अन्याय के सामने घुटने नहीं टेके। यह बाबा टिकैत का ही दम-ख़म था कि मुख्यमंत्री और मंत्री दिल्ली और लखनऊ से निकलकर उनके दरवाजे पर ख़ुद सिसौली आते थे। वह किसान नेताओं और किसान दलों की एकजुटता के पक्षधर थे। कई बार ऐसे मौके आये कि उन्होंने सभी किसान नेताओं को एक मंच पर इक्कठा किया। मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री चौधरी टिकैत के हुक्के की गडगडाहट से सभी भली भांति परिचित थे।
बाबा टिकैत ने सिर्फ किसानों या जाटों के मुद्दे ही नहीं उठाये बल्कि वह क्षेत्र में सामजिक एकता के भी पक्षधर थे। सन 1989 में भोपा क्षेत्र की मुस्लिम युवती नईमा के इन्साफ के लिए उनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था।
अपने आंदोलनों के चलते कई बार चौधरी टिकैत जेल भी गए पर उनकी ताक़त कम होने की बजाय हमेशा बढती ही रही और सरकार को हमेशा उनके आगे झुकना पड़ा। आन्दोलन के साथ ही साथ टिकैत को कई बार आरोपों और विवादों का सामना भी करना पड़ा पर अपने करिश्माई व्यक्तित्व के कारण उनके विरोधियों को हमेशा पीछे हटना पड़ा।
इतने बड़े किसान नेता टिकैत सरल स्वभाव के थे और अपनी देहाती शैली के कारण क्षेत्र में उनकी अलग पहचान थी। कई बार तो उनकी सरलता के कारण उन्हें विवादों में रहना पड़ा। सन 2008 में मायावती से हुए विवाद से जहाँ वह राष्ट्रीय मीडिया और सरकार के निशाने पर आ गये थे वही उनके समर्थकों के अपार समर्थन से वह न सिर्फ पूरे मामले से बाहर आये बल्कि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को पीछे हटना पड़ा था।
सन 2010 में टप्पल में किसानों की भूमि अधिग्रहण को लेकर लड़ी गयी लड़ाई उनकी अंतिम लड़ाई थी। 76 साल की उम्र में केंसर से पीड़ित होते हुए भी बाबा टिकैत अंतिम दिनों तक टप्पल में किसानों के संघर्ष में कदम से कदम मिलते रहे। 15 मई 2011 में मुज़फ्फरनगर में बाबा टिकैत का देहांत हो गया।
उनकी मृत्यु से उत्तर प्रदेश के किसानों का मसीहा छिन गया और क्षेत्र में किसान की आवाज बुलंद करने वाला कोई नहीं रहा। आज क्षेत्र का किसान अपने वजूद की तलाश में प्राकृतिक और राजनीतिक हर ओर से छला जा रहा हैं और आत्महत्या करने को मजबूर है। अगर आज चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत होते तो क्या किसान इस कगार पर खड़े होते?
शालिनी चौधरी
Monday, June 8, 2015
Bhartiya kisan union feedback to joint committee of parliament on the land acquisition amendments bill 2015
अध्यक्ष/सदस्य
संयुक्त संसदीय समिति भूमि अधिग्रहण बिल 2015
लोकसभा सचिवालय कमरा न0 306 तीसरा
फ्लोर
संसद भवन एनेक्सी नई दिल्ली।
विषयः- भूमि अधिग्र्रहण बिल 2015 पर
भारतीय किसान यूनियन की आपत्ति और सुझाव।
आदरणीय अध्यक्ष/सदस्य
भूमि अधिग्रहण बिल, 2015 को सरकार ने देश के हर कोने से उठ रही विरोधी आवाज
व् आन्दोलन को देखते हुए संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है | 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अंतर्गत जबरन, अनुचित और अन्यायपूर्ण तरीके से जमीन अधिग्रहण के
अनुभवों के आधार पर, विविध किसान संगठनों के लम्बे संघर्ष के बाद भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था ।
एक दशक तक चले अभूतपूर्व देशव्यापी परामर्श, संसद में और बीजेपी के नेतृत्व वाली दो स्थायी समितियों
में बड़े पैमाने पर बहस के बाद ही 2013 का यह भूमि अधिग्रहण अधिनियम बना, उस वक्त वर्तमान लोकसभा सभापति और स्थायी समिति की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के
साथ बीजेपी ने भी तहेदिल से अधिनियम के समर्थन में थी, और खुलकर इस कानून के प्रावधानों का समर्थन कर रही थी
|
हम मानते हैं की 2015 का भूमि अध्यादेश / अधिनियम पूरी तरह से, समुचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, का और अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सालों के
संघर्ष का मजाक है ।
इस अधिनियम के
प्रावधान किसानों की बिना अनुमति के उसकी ज़मीन छीनकर कम्पनियों को दे देंगे और
दूसरी तरफ बहु फसली ज़मीन या फिर ज़रुरत से ज्यादा ज़मीन का अधिग्रहण भी social impact assessment के प्रावधान को
हटाने के कारण लागू हो जाएगा |
सरकार ने
अध्यादेश में जो संशोधन भी लायें है वह सिर्फ कागजी ही दिखता है क्योंकि वह मूल
रूप से २०१३ के कानून के मूल उद्देश्यों को खारिज करता है. खेती की ज़मीन का
हस्तांतरण, खाद्य
सुरक्षा की अनदेखी, लोगों
की जीविका, जबरदस्ती
भूमि अधिग्रहण पर रोक, अधिग्रहित
भूमि को किसानों को वापसी आदि जैसे मुद्दों को २०१३ का कानून कुछ हद्द तक सम्बोधित
करता था, पर वह भी ख़तम कर दिया गया है |
यह सरकार भी जानती है कि जमीनें
पीढ़ी दर पीढ़ी आजीविका मुहैय्या कराती हैं और मुआवजा कभी भी वैकल्पिक आजीविका नही
दे सकते हैं ! यह सभी जानते हैं कि जब भारत में कृषि योग्य ज़मीनें व किसान नही बचेंगें
तो देश की खाद्य संप्रभुता समाप्त हो जायेगी और देश खाद्य के मामले ऑस्ट्रेलिया और
अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर हो जाएगा ,तथा साथ साथ ज़मीन से
जुड़े हुए भूमिहीन किसान और खेत मज़दू णर तथा ग्रामीर, दस्तकार
,छोटे
व्यापारी देश के नक़्शे से ही गायब हो जायेंगे। उसके
बाबजूद भी जमीनों के चार गुना मुआवजा देकर अधिग्रहण की बात कर रही सरकार अपने आप
को किसानो का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं, जबकि सच्चाई तो यह है
कि भाजपा शासित राज्यों की सरकारे अति उपजाऊ ज़मीन का भी मुआवजा मात्र दो से ढाई
गुना पर निपटा रही हैं |
समिति के सामने भारतीय किसान यूनियन कुछ सुझाव रखना चाहती हैं और बतलाना चाहते हैं की सरकारी संशोधन सिर्फ
दिखावे हैं, आज जरूरत है की कृषि संकट को दूर किया जाए और खेती एक जीविका का उत्तम
साधन बन सके लोगों के लिए |
भारतीय किसान यूनियन आशा करती है
कि समिति को दिए गए सुझावों पर गंभीरता से चिंतन करते हुए अपनी राय में शामिल कर
सरकार को देगी | |
भवदीय
चौ.नरेश टिकैत चौ युधवीर सिंह
(राष्ट्रीय अध्यक्ष
) (राष्ट्रीय महासचिव )
Thursday, June 4, 2015
चीनी मिलांे का पैराई सत्र 2012-13 एवं 2013-14 का किसानों को दिये जाने वाला 490 करोड़ रुपये का ब्याज माफ किये जाने के फैसले पर पुनर्विचार किये जाने हेतुः-
04 june 2015
श्री अखिलेश यादव जी,
मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार,
लखनऊ।
विषयः- चीनी मिलो का पैराई सत्र 2012-13 एवं 2013-14 का किसानों को दिये जाने वाला 490 करोड़ रुपये का ब्याज माफ किये जाने के फैसले पर पुनर्विचार किये जाने हेतुः-
मान्यवर ,
समाचार पत्रों के माध्यम से यह जानकार बडा आश्चर्य हुआ है कि पैराई सत्र 2012-13 एवं 2013-14 का किसानों को मिलने वाला 490 करोड़ रुपये का ब्याज सरकार द्वारा माफ कर दिया गया है। सरकार के इस फैसले से किसानों को बड़ा झटका लगा है। भाकियू उद्योग को राहत देने के खिलाफ नहीं है, लेकिन राहत किसान के दम पर नहीं होनी चाहिए। पिछले कई वर्षो से किसान सूखा, बाढ़, असमय बारिश आदि आपदाएं झेल रहा है। जिससे किसानों का खेती का खर्च भी बढ़ा है। समय से भुगतान न होने के कारण किसानों द्वारा कृषि ऋण समय से न चुकाए जाने के कारण ऋण पर 4 प्रतिशत की जगह 11 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करना पड़ा है। भुगतान न होने के कारण किसानों की रिकवरी भी जारी हुई है। ऐसी स्थिति में किसानों को मिलों द्वारा ब्याज का भुगतान किया जाना चाहिए। आपकी सरकार के द्वारा लिया गया यह फैसला किसान हित में नहीं है।
आपसे आग्रह है कि ब्याज माफी के सरकार के फैसले पर पुनर्विचार कर इसे निरस्त किया जाए। अन्यथा भारतीय किसान यूनियन के 16-18 जून हरिद्वार में होने वाले वार्षिक अधिवेशन में आन्दोलन के फैसले के लिए बाध्य होना पडे़गा।
भवदीय,
चै. राकेश टिकैत
(राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू)
Wednesday, June 3, 2015
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