Monday, May 9, 2011

भटटा-पारसौलके हर घर में मातम राकेश टिकैत बोले, समाधान करो

जमीं पर धुआं, दिलों में आग


नेताजी बोले

संपादन एवं डिजाइनिंग, गुरदीप सिंह

भट्टा पारसौल (ग्रेटर नोएडा)। कल तक जहां रहती थी दिन-रात रौनक, वहां अब सिर्फ वीराना नजर आ रहा है। और सन्नाटे को चीर रहे हैं तो सिर्फ अफसरों की गाड़ियों के टायर या फोर्स के बूटों की आवाज। पूरी रात पुलिस-पीएसी ने गांव में जिस तरह से तलाशी अभियान चलाया था, डरी-सहमी महिलाओं की जुबान से उसकी सच्चाई फूट रही है मगर उसे मीडिया तक नहीं दिया जा रहा। गांव में न मर्द दिख रहे और न बच्चे। महिलाएं इतनी आतंकित हैं कि घरों से बाहर तक नहीं झांक रहीं। पुलिस-पीएसी और आरएएफ ने भट्टा पारसौल को चारों तरफ से सील कर रखा है। खेतों से निकलकर बाहर आए पड़ोसी गांव के हलवाई इमरान ने बताया कि पुलिस किसी को गांव की तरफ नहीं झांकने दे रही। जैसे, शनिवार के सच परदा डालने की कोशिश हो रही हो। सुबह कुछ देर को मीडिया की टीमें गांव में पहुंचने में सफल हो गई थी तो कुछ कड़वी बातें सुनने को मिलीं। एक महिला ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि पुलिस और पीएसी ने महिलाओं और बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया। नई-नई ब्याह कर आई एक बहू के साथ भी मारपीट की। तोड़फोड़ और आगजनी तो न जाने कितनी जगहों पर की। पुलिसवाले बार-बार महिलाओं से उनके पतियों के नाम और उनके मोबाइल नंबर पूछ रहे थे। रात की कहानी गांव दूसरे दिन शाम तक बयां करता दिख रहा है।

हर हाथ में लाठी, हर हाथ में बंदूक, मनुहार को उठते रहे हाथ अब तंत्र के गिरेबान तक आ पहुंचे हैं, नोएडा से अलीगढ़, आगरा और मथुरा तक ‘अन्नदाता’ धधक रहे हैं, गम, गुबार, गुस्से की इस आंधी के अर्थ अब भी नहीं समझे गए तो आगे इसके अंजाम और भयानक हो सकते हैं, वक्त लाभ-हानि के विमर्श का नहीं, फैसले का है, अब तो जागे सरकार!

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. रीता बहुगुणा जोशी ने किसानों से शांति बहाली की अपील की है। पुलिस व शासन को सुझाव दिया है कि बदले की भावना से कार्रवाई तुरंत बंद करे। उन्होंने दनकौर (आगरा) एवं अलीगढ़ में किसान और पुलिस के बीच हुए संघर्ष पर अफसोस जाहिर किया है। वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय महिला आयोग से संपर्क कर रही हैं, ताकि तत्काल निर्दोष का उत्पीड़न रोकने में वह मदद करे।

भाजपा प्रवक्ता हृदयनारायण दीक्षित ने कहा है कि भट्टा पारसौल गांव की घटना के लिए पूरी तरह मुख्यमंत्री मायावती जिम्मेदार है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए किसानों की उपजाऊ भूमि औने-पौने दामों पर जबरिया उन्हें बेची जा रही है। सरकार अपनी ही भूमि अधिग्रहण नीति का पालन नहीं कर रही है।

जनता दल (यूनाइटेड) के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन भइया व महासचिव सुभाष पाठक ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए मारे गए किसानों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये मुआवजा तथा एक आश्रित को सरकारी नौकरी देने की मांग की है।

राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह व प्रदेश महासचिव अनिल दुबे ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को भट्टा-पारसौल जाने से रोकने की निंदा की है। लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने कहा कि सरकार किसानों से 850 रुपये प्रति वर्ग मीटर में जमीन ले रही है और उसे 20 हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर में बेच रही है। इसे किसी भी लिहाज से सही नहीं ठहराया जा सकता।

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) के प्रदेश प्रभारी पवन भाई गुप्ता ने इस घटना की निंदा की है। उत्तर प्रदेश किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कुमार अंजान व राम प्रताप त्रिपाठी ने कहा कि भट्टा पारसौल के आसपास के 25 गांवों के किसान 4 माह से धरना दे रहे थे, मगर इनकी सुनी नहीं गई।

भट्टा

आंसुओं में डूबे अन्नदाता

लड़ो मत, समाधान सोचो



90 से 75 फीसदी पर आ पहुंची कृषि निर्भरता



सुरसा की तरह शहर निगल रहे कृषि की भूमि



हर ओर से उठी ‘राष्ट्रीय जमीन नीति’ की मांग



हालात ऐसे ही रहे तो अभी और भड़केंगे शोले



अफसरों के भरोसे रहे तो होंगे फसाद

कब बुझेगी आंदोलन की चिंगारी

भूमि अधिग्रहण की आग में झुलस रहे नोएडा, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, अब वक्त कह रहा है, सरकार तुरंत ऐसा फैसला ले कि आंदोलन आगे न बढ़ें

हर चेहरे पर खौफ



मर्द क्या नजर नहीं आ रहे अब बच्चे भी



दहशत में घरों से झांक भी नहीं पाईं महिलाएं



रात में फोर्स ने की घरों में घुसकर मारपीट



अनुरोध भारद्वाज/ आमोद कौशिक

भट्टा-पारसौल। विकास और विस्तार की आंधी विनाश की राह चल रही है तो अन्नदाता किसानों के दिल डोल रहे हैं। ये आवाजें उस हक के लिए उठ रही हैं जो उन्हें मां समान माटी से मिला है। ऐसा हो भी क्यों न? शहरों की फिक्र करते-करते सरकारें खेत, खलिहानों को भूल गई हैं। इसलिए, पूरब से ‘पश्चिम तक जमीन के लिए संघर्ष हो रहे हैं। और फसाद की इन कहानियों के बीच से ‘राष्ट्रीय जमीन अधिग्रहण नीति’ बनाने के शोर भी उठ रहे हैं।

भू-अधिग्रहण को लेकर जैसी चिंगारी कुछ साल पहले गाजियाबाद के बझेड़ा गांव से उठी थी, अब वैसी ही आग में नोएडा, अलीगढ़, मथुरा, आगरा सब झुलसते दिखाई दे रहे हैं। किसानों और पुलिस के बीच संघर्ष की घटनाएं हरियाणा समेत देश के दूसरे राज्यों में ही दोहराई जा रही हैं। सवाल, जमीनों के चक्कर में हो रहीं ऐसी महाभारत टालने का नहीं, समस्या के जड़ से खात्मे का है। हर तरफ शोर उठ हर तरफ हो रही है मगर सरकार फिर भी नहीं जाग रही। यह जानते हुए भी कि समाधान जल्द नहीं सोचे गए तो आगे हालात और भयावह हो सकते हैं।

किसान आंदोलनों से जुड़े बुद्धजीवी एक सुर में कह रहे हैं कि कानून ऐसा नहीं कि किसानों के साथ न्याय हो सके। जिस जमीन से देश की अन्नपूर्ति होती है, उसे संरक्षित करने की तुरंत विशेष नीति बननी चाहिए। वरना, जमीन यूं ही कम होती जाएगी।

जनसख्ंया विस्फोट से शहर इसलिए जूझ रहे हैं कि देश में कृषि निर्भरता 90 फीसदी से घटकर अब 65 फीसदी पर आ पहुंची है।

पश्चिमी यूपी के प्रमुख किसान नेता और अखिल भारतीय जाट आरक्षण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक भी इस हकीकत से इत्तफाक रखते हैं।

उनका कहना है कि दमन से नहीं, किसान हक पाकर ही शांत होंगे। और यह हक उनको तब मिलेगा , जब सरकार राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण नीति बनाकर शहर, गांव और कृषि जमीन के बीच संतुलन बनाएं।

आगरा। ग्रेटर नोएडा की आग एत्मादपुर में पहुंचने के बाद चौगान गांव छावनी में तब्दील हो चुका है। दोपहर तक यहां पुलिस प्रशासन की गाड़ियां और पुलिस, पीएसी, आरएएफ के जवान ही दिखाई दे रहे थे। चौगान के पुल पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। यहां अधिकारियों ने कैंप कार्यालय बना लिया है। चौगान में डीएम अजय चौहान, डीआईजी असीम अरुण, एसपी फीरोजाबाद, पुलिस के 400 जवान, शहर और देहात के फोर्स के साथ ही दो कंपनी पीएसी और एक कंपनी आरएएफ के जवान गश्त कर रहे हैं। हालिंक पुलिस को गांव में जाने की इजाजत नहीं है।

झड़पों में घायल हुए एक

दर्जन पुलिसकर्मी

चौगान में हुए हिंसक संघर्ष में दर्जन भर पुलिसकर्मी घायल हो गए। एसएन इमरजेंसी पहुंचे घायलों में पीएसी 15वीं बटालियन के एचसीपी धर्मपाल सिंह, सत्यनारायण, लक्ष्मण सिंह, ऐबरन सिंह, अनिल शर्मा, प्रतिसार निरीक्षक जनक सिंह, कांस्टेबल पुष्पेंद्र सिंह, चालक अशोक कुमार, एचसीपी रामदेव और वीरेश कुमार शामिल हैं।

अगस्त 2010 से चल रही जमीन की जंग

यमुना एक्सप्रेस और जेपी के लिए लैंड पार्सल के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में किसानों की हक की लड़ाई अगस्त 2010 से चल रही है। इस मामले में किसानों और प्रशासन की बीच कई बार खूनी टकराव हो चुका है। किसानों का कहना है कि उनकी उपजाऊ जमीन को जबरन औने पौने दामों में कब्जाने की साजिश हो रही है। इसी के चलते एत्मादपुर में किसानों ने अपने हक की आवाज बुलंद की। 14 अगस्त 2010 को किसान घरों को छोड़कर सड़क पर उतर आए थे। 16 अगस्त को पुलिस की कर्मियों की रायफल छीनने की घटना हुई। इसको लेकर तनाव की स्थिति की पैदा हो गई थी। 17 को अगस्त को किसान और पुलिस एक बार फिर आमने सामने आ गए। दोनों ओर से जमकर पथराव और आगजनी हुई। इस घटना में एसडीएम और सीओ चुटैल हो गए थे।

छावनी में बदल गया चौगान

केंद्रीय नीति बनाने का समय आया

मैगसेसे पुरुष्कार विजेता जलपुरुष राजेन्द्र सिंह भी मानते हैं कि कृषि योग्य जमीन के संरक्षण और आवास-उद्योगों के लिए गैर कृषि की जमीनों का इस्तेमाल ही इस समस्या का स्थाई समाधान हो सकता है। यह तभी संभव है, केन्द्रीय जमीन नीति बने। कितने ही किसान आंदोलनों की अगुआई कर चुके किसान संघर्ष समिति के सचिव सलेक भैया ने भी यही राय जाहिर की है।

आगरा

भटटा-पारसौलके हर घर में मातम

राकेश टिकैत बोले, समाधान करो

गाजियाबाद। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि अब समय आ गया है कि भूमि अधिग्रहण के मुद्दे का सरकार स्थायी समाधान निकाले। अगर ऐसा नहीं हुआ तो माहौल और खराब हो सकता है। नोएडा में गिरफ्तारी के बाद उन्होंने ‘अमर उजाला’ से बातचीत में कहा कि जमीन का मसला बहुत गंभीर हो गया है। भाकियू हर तरह से किसानों से साथ है। अगर प्रशासन चाहे तो भाकियू बातचीत के लिए आगे आ सकती है लेकिन किसानों के बीच जाने की इजाजत प्रशासन नहीं दे रहा है। भट्टा में शनिवार को जो भी हुआ उसके लिए किसी एक पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। मारे गए पुलिसकर्मी भी किसानों के बेटे थे। डीएम को गोली लगना भी गलत है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि किसानों और प्रशासन के बीच जो अविश्वास का माहौल बन गया है, उसे समाप्त किया जाए।

अलीगढ़। टप्पल आंदोलन से चर्चा में आये जिकरपुर का ऐतिहासिक धरनास्थल भट्टा पारसौल और आगरा के हिंसक आंदोलन के बाद ररिवार को संगीनों के साये में रहा। यहां बड़ी मात्रा में फोर्स की तैनाती से किसान जिकरपुर गांव के अंदर ही रहे। शनिवार को हिंसक संघर्ष के बाद किसानों ने रविवार को जिकरपुर में पंचायत करने का ऐलान किया था, लेकिन फोर्स की मौजूदगी के कारण ये पंचायत सार्वजनिक न होकर गोपनीय ढंग से होती रही। किसान अपने अपने घरों में इस आंदोलन की आगे की रणनीति बनाते रहे।

धरनास्थल पर केवल फोर्स ही मौजूद रही। तेज धूप और गर्मी के कारण फोर्स भी यमुना एक्सप्रेस-वे के ठीक नीचे जिकरपुर-कनसेरा लिंक रोड पर डेरा जमाये रही। ये रास्ता ही जिकरपुर को कनसेरा से जोड़ता है।

इस दौरान एडीएम प्रशासन शत्रुघ्न सिंह, एसडीएम खैर विजय कुमार, एसपी ग्रामीण प्रेमचंद्र के नेतृत्व में बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स मौजूद रही। श्यारौल से घाघौंली और गौराला तक पुलिस प्रशासनिक अधिकारी पेट्रोलिंग करते रहे। ये पूरा इलाका 10 से 12 किमी का है। अलीगढ़ के श्यारौल से मथुरा के नौझील थाने की सीमा तक ये चहलकदमी दोपहर बाद तक जारी रही।

इंटरचेंज पर होता रहा काम:यमुना एक्सप्रेस वे के टप्पल से सटे हुए सभी कंस्ट्रक्शन प्वाइंट रविवार सुबह से ही पुलिस फोर्स की कड़ी निगरानी में रहे। टप्पल-फरीदाबाद रोड पर बने रहे इंटरचेंज पर धीमी गति से कामकाज होता रहा। टप्पल-फरीदाबाद रोड पर निमार्णाधीन इंटरचेंज से ही कामकाम दो तरह से बंट गया था। इंटरचेंज से जिकरपुर होते हुए घांघौली (मथुरा की ओर) तक कहीं भी इस दौरान कोई कामकाज नहीं हो सका जबकि इंटरचेंज से श्यारौल तक (बुलंदशहर की ओर) कामकाज धीमी गति से चलता रहा। हालांकि काम करने वाले मजदूरों की संख्या कम ही रही।

पीएसी और पुलिस तैनात, तनाव

अलीगढ़

आंखों देखी
भट्टा-पारसौल में हालात बिगड़ने के बाद पीएसी को हटाकर आरएएफ की एक दर्जन कंपनियां तैनात
दोनों गांवों को सुरक्षा घेरे में ले लिया गया था, किसी को गांव में जाने की इजाजत नहीं

शासन ने स्पेशल डीजी बृजलाल को मौके पर भेजा



किसानों की गिरफ्तारी के लिए दूसरे दिन भी छापे

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