Sunday, May 15, 2011

किसानों की लाठी

उन्होंने देश के तमाम हिस्सों में किसान आंदोलनों का नेतृत्व किया


महेंद्र सिंह टिकैत के जाने से भारतीय किसान आंदोलन में जो एक विराट शून्य पैदा हुआ है, उसकी भरपाई मुश्किल है। वह आंदोलन का दूसरा नाम थे। उन्होंने अपने आंदोलन की शुरुआत बढ़ी हुई बिजली दरों के खिलाफ की थी। 27 जनवरी, 1987 को मुजफ्फनगर जिले में करमूखेड़ी के बिजलीघर पर किसानों का धरना शुरू हुआ था। पीएसी द्वारा रोके जाने पर किसान उत्तेजित हो गए। परिणामस्वरूप पुलिस की गोलीबारी में दो किसानों की मौत हो गई। पीएसी का एक जवान भी मारा गया। पहली या दूसरी अप्रैल को भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष टिकैत ने फिर करमूखेड़ी बिजलीघर को घेरकर धरना दिया।

अधिकारियों के आश्वासन पर वह धरना समाप्त हुआ। लेकिन पूरे प्रदेश में इस आंदोलन का व्यापक असर हुआ। सरकार की ओर से पहली बार किसानों की समस्या का समाधान करने के गंभीर प्रयासों का आभास मिला। भारतीय किसान यूनियन की ओर से जिलाधिकारी को दिए गए 11 सूत्रीय मांगों पर ठीक से विचार किया गया। बिजली की बढ़ी हुई दरों और लंबित बिजली पर लगाई गई दंड राशि आदि माफ करने पर समझौता हुआ।

करमूखेड़ी के बाद तो टिकैत किसानों की अस्मिता के प्रतीक ही बन गए। मेरठ, रजबपुर (मुरादाबाद), खैर (अलीगढ़), दिल्ली का वोट क्लब, भोपा (मुजफ्फरनगर), गाजियाबाद, चिनहट (लखनऊ), रामकोला (गोरखपुर), मुंबई, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु सहित प्राय: देश के सभी इलाकों में किसानों के हित में उन्होंने आंदोलनों का नेतृत्व किया।शुरुआती दिनों में लोग उन पर कटाक्ष भी करते। लेकिन इससे उनकी प्रतिबद्धता में कहीं कोई कमी नहीं आई। उन्होंने आजीवन सादा जीवन जीया। शुद्ध शाकाहारी भोजन करते और दिखावे से कोसों दूर थे। वही मोटा हाथ का बुना गाढ़े (देसी खद्दर) का कुरता, धोती और सिर पर सादी गांधी टोपी। ठेठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खड़ी बोली में ही वार्तालाप करते और उसी में धड़ल्ले से भाषण भी देते। मंच चाहे देश में हो या विदेश में, गांव में हो या शहर में, अशिक्षित-अर्द्धशिक्षित किसानों का हो या उच्च शिक्षित विद्वानों का, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। धीरे-धीरे किसान नेता के तौर पर महेंद्र सिंह टिकैत का नाम प्रसिद्ध हो गया। देश भर के किसानों के लिए तो यह नाम जादुई संगीत बन गया। किसान ही नहीं, दूसरे वर्गों की समस्याओं पर भी टिकैत की टिप्पणी वजन रखने लगी थी।

करमूखेड़ी की घटना से पहले 17 अक्तूबर, 1986 को महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन की स्थापना मुजफ्फरनगर जिले के अपने पैतृक गांव सिसौली में कर चुकेथे। इसी गांव में 1935 में उनका जन्म एक जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौहल सिंह का 1943 में निधन हो गया। उनका परिवार उस सर्वखाप पंचायत से जुड़ा हुआ था, जिसका पुराने जमाने से उत्तर भारत में दबदबा था। दरअसल जिस पंचायती राज की बात आज जोर-शोर से की जाती है, वह पंचायत प्रणाली अपने देश में सदियों से मौजूद रही है।

इस संदर्भ में एक विशेष घटना का उल्लेख करना आवश्यक प्रतीत होता है। वर्ष 1949 या 1950 में मुजफ्फरनगर केही सिसौली जितने प्रसिद्ध और लगभग उतनी ही आबादी वाले जाट बहुल गांव सोरम के एक पुराने मकान से तकरीबन 40-50 किलोग्राम वजन के कागजात पुराने बक्सों में बंद मिले। यह परिसर चौधरी कबूल सिंह का था। उन दस्तावेजों की जांच-पड़ताल करने पर पता चला कि वे सर्वखाप पंचायत के रिकॉर्ड थे। जिस घर में वे पाए गए थे, वह परिवार कई पीढ़ियों से उस सर्वखाप पंचायत का मंत्री भी रहा था। चौधरी कबूल सिंह उसी परंपरा में उस परिवार के मुखिया होने के नाते मंत्री थे। यह कागजात लेकर वह आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता और संस्कृत के जाने-माने विद्वान जगदेव सिंह सिद्धांती के पास आए। सिद्धांती जी उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में गुरुकुल शिक्षा पद्धति और समाज सुधार अभियान के कारण ख्याति प्राप्त कर चुकेथे। मेरे पिता रघुवीर सिंह शास्त्री उनके शिष्य भी थे और सहयोगी भी। ये दोनों दिल्ली से

सम्राट

नाम से समाचार पत्र प्रकाशित करते थे। उसी अखबार में मंत्री कबूल सिंह ने सर्वखाप पंचायत के इन ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रकाशित कराया। इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर उस्मानिया विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एमसी प्रधान की एक शोधपूर्ण पुस्तक-

उत्तर भारत की जातियों की गणराज्यीय राजनीतिक व्यवस्था

-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित की। इस पुस्तक और अन्य शोधकार्यों के दौरान पता चला कि जिस सर्वखाप का मंत्री सोरम गांव में है, उसका अध्यक्ष या प्रधान तो सिसौली गांव में है। खोजने पर ज्ञात हुआ कि यह वही परिवार है, जहां महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म हुआ था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कतिपय अग्रणी व्यक्तियों ने निश्चय किया कि इस प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित किया जाए। वर्ष 1954 या 1955 में इन लोगों की पहल पर एक विशाल सर्वखाप पंचायत का आयोजन दीपावली के दिन किया गया। सिसौली की उस महापंचायत में वैदिक पद्धति से सामूहिक यज्ञ केबाद सार्वजनिक सभा हुई। उसमें लगभग एक लाख लोगों की उपस्थिति में स्वर्गीय चौहल सिंह के 19 वर्षीय पुत्र महेंद्र सिंह के सिर पर हल्दी चंदन का टीका लगाया गया था। कहने का अर्थ यह कि नेतृत्व तो उन्हें विरासत में ही मिला था।

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