Monday, January 18, 2021

महिलाओं ने संभाला किसान आंदोलनों का मोर्चा

गाजीपुर बॉर्डर पर मंच का संचालन करते हुए महिला किसान


गाजीपुर बॉर्डर पर 'महिला किसान दिवस' के अवसर पर महिलाओं ने मंच से लेकर आंदोलन की बागडोर संभाली|

पिछले 54 दिनों से किसान दिल्ली के सीमाओं पर तीन किसान विरोधी काले कानूनों का विरोध कर रहे है और MSP को कानून बनाने की मांग कर रहे है। सरकार के साथ 9 बार वार्ता हो चुकी है जिसका अभी तक कोई परिणाम नही निकला है। दूसरी तरफ कई भारतीय मीडिया चैनल किसानों के इस संघर्ष को खालिस्तानी, देश-विरोधी, और राजनैतिक साजिश होने का दावा करते आ रहे है। महिला, बुजुर्ग, एवं युवाओं के धरने में शामिल होने पे भी सवाल उठाया जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने वक्तव्य में ये दर्शाया की महिलाओं, बुजुर्गो, और बच्चों को प्रोटेस्ट में रखा जा रहा है। 

अब सवाल ये उठता है कि महिलाएं जिनकी खेती में पुरुषों के बराबर या कहे ज्यादा योगदान होता है उनके किसान होने के अस्तित्व को ही नकार दिया गया। 

आज महिला किसान दिवस के अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय और सरकार के अड़ियल रुख को आइना दिखाने के लिये 'महिला किसान दिवस' पर महिला किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर पर हो रहे कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन में ना सिर्फ मंच अपने हाथ मे लिया बल्कि 21 महिला किसानों ने भूख हड़ताल पे भी बैठी। 

महिला किसानों ने ये व्यक्त किया कि जिस तरह से समाज मे हमारे योगदान को नकार दिया जाता है उसी तरीके से आंदोलन को खड़ा करने और उन्हें चलाने में भी हमारे योगदान को नकारा जा रहा है। धरना स्थलों पर हमारी उपस्थिति खेती में हमारे योगदान को दर्शाती है। धरने में हापुड़ से आयी महिला किसान बबली सिंह ने कहा, "अभी तक तो हम खेतों और घरों में थे लेकिन सरकार के अड़ियल रवैये और हमारी पहचान पे सवाल उठने के बाद अब हम सड़कों पे भी होंगे। सर्वोच्च न्यायालय और सरकार को ये समझना होगा कि जितना एक पुरुष खेतों में काम करता है उससे कहीं ज्यादा औरतें खेतों पे काम करती हैं। धरना करने के लिए हमे किसी की ना तो परमिशन चाहिए ना ही सहयोग। महिला किसान आत्मनिर्भर है और आगे ऐसे किसी भी कृषि -किसान विरोधी कानूनों का विरोध करती रहेंगे।" 

एक दूसरी महिला किसान ने कहा, "अब ऐसा समय नही रह की महिलाएं अपने योगदान को आगे पहचान नही दिलायेंगी, अब महिलायें अपने काम को पहचान और अपना हक़ दोनों ले के रहेंगी। ये तीन काले कानून सिर्फ पुरुष किसानों का ही नुकसान नही करेंगी उसके साथ साथ हम महिला किसानों और हमारे बच्चों पर भी बुरा प्रभाव डालेंगी।"

26 जनवरी को होने वाली 'किसान ट्रैक्टर परेड" के विषय मे एक महिला किसान ने कहा, "जिस प्रकार से महिलायें 54 दिनों से इस आंदोलन में बढ़-चढ़ के हिस्सा ले रही है वैसे ही 26 जनवरी वाले परेड में महिलाएं को हाथ मे ट्रैक्टर की स्टीयरिंग होगी।"

आज दिन भर विभिन्न महिला किसानों प्रदर्शन स्थल पर पहुंचकर अपने देश के किसानों को समर्थन और सहयोग दिया। 

पंजाब से आयी महिलाओं ने आंदोलन को गर्म वस्त्र प्रदान करके आंदोलन का  समर्थन किया


हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश इत्यादि जगहों की करीब 7 युवा महिला कबड्डी टीम ने भी खेत-मिट्टी के खेल कबड्डी के आयोजन में हिस्सा लिया। साथ ही साथ बच्चियों ने दंगल का भी खेल दिखाया और योग किया| 

हरियाणा की युवा महिला कबड्डी टीम


हरियाणा युवा महिला कबड्डी टीम के कोच जगबीर सिंह जी जोकि खुद एक किसान है ने कहा, "हम यहां किसानों के समर्थन में आये है। ये जितनी भी लड़कियां है सब किसान परिवार से है।"

हरियाणा टीम की युवा खिलाड़ियों ने कहा कि वो सिर्फ यहां खेलने के मकसद से ही नही बल्कि ये भी बताना चाहती है किसानों के इस आंदोलन को समझती है और तीनों काले कानून को हटाने और MSP को कानून बनाने के लिये इसका समर्थन भी करती है।" 

आंदोलन में शामिल अन्य कई महिला किसानों ने एक साथ ये कहा कि "ये सिर्फ पुरुषों का आंदोलन नही है। पुरुषों की संख्या भले ही प्रदर्शन स्थल पे ज्यादा हो लेकिन महिला किसान ही है जो घरो और खेतों को संभाल रही है।"

आंदोलन के लंबा चलने पे महिला किसानों ने कहा, "हम हमेशा से ही धैर्य का प्रतिबिंब रहे है और जब तक सरकार तीनो काले कानूनों को वापस नही लेती हम डेट रहेंगे, दिल्ली की सीमाओं पे भी और गांवों, घरों, और खेतों पे भी।"

भारतीय किसान यूनियन हमेशा से महिला किसानों का सम्मान करती रही है। आंदोलन में उनकी भागीदारी हमारे संकल्प को और भी मजबूत बनाती है। 

राकेश टिकैत भूख हड़ताल पर बैठी महिला किसानों के साथ गाजीपुर बॉर्डर स्थित मंच पर

भारतीय किसान यूनियन 'महिला किसान दिवस' पर महिला किसानों के अलावा देश के सभी महिलाओं से इस संघर्ष में शामिल होने की आशा करती है क्योंकि किसान के बाद एक महिला ही होती है जिन्हें सब्जियों - अनाजों का असल मूल्य पता होता है। 

भारतीय किसान यूनियन की तरफ से महिला किसानों का सम्मान करते हुए


जय जवान, जय किसान!

धमेंद्र मलिक

राष्ट्रीय मीडिया इंचार्ज 

भारतीय किसान यूनियन

महिला किसान दिवस पर गाजीपुर बॉर्डर से अन्य सामचारों के लिंक निचे दिए गए है:        

Tuesday, June 2, 2020

सीजन 2020-21 खरीफ की फसलों की खरीद के लिए घोषित समर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा, यह समर्थन मूल्य कुल लागत (सी-2) पर घोषित नहीं :- चौ0 राकेश टिकैत

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सीजन 2020-21 खरीफ की फसलों की खरीद के लिए घोषित समर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा, यह समर्थन मूल्य कुल लागत (सी-2) पर घोषित नहीं :- चौ0 राकेश टिकैत
पिछले पांच वर्षों की सबसे कम मूल्य वृद्धिः-भाकियू


भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ0 राकेश टिकैत जी ने हाल में घोषित सीजन 2020-21 के लिए निर्धारित खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों के साथ धोखा बताते हुए कहा कि एक बार फिर सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है। यह देश के भंडार भरने वाले और खाद्य सुरक्षा की मजबूत दीवार खडी करने वाले किसानों के साथ धोखा है। यह वृद्धि पिछले पांच वर्षों में सबसे कम वृद्धि है। सरकार ने कृषि विश्वविद्यालयों की लागत के बराबर ही समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया है। किसानों को कुल लागत सी2 पर 50 प्रतिशत जोड़कर बनने वाले मूल्य के अलावा कोई मूल्य मंजूर नहीं है। सरकार महंगाई दर नियंत्रण करने के लिए देश के किसानों की बलि चढ़ा रही है। इसी किसान के दम पर सरकार कोरोना जैसी महामारी से लड़ पायी है। इस महामारी में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का नहीं मांग का संकट बना हुआ है। सरकार द्वारा धान का समर्थन मूल्य वर्ष 2016-17 में 4.3 प्रतिशत, 2017-18 में 5.4 प्रतिशत, 2018-19 में 12.9 प्रतिशत, 2019-20 में 3.71 प्रतिशत वृद्धि की गयी थी। वर्तमान सीजन 2020-21 में यह पिछले पांच वर्षों की सबसे कम 2.92 प्रतिशत वृद्धि है। सरकार द्वारा घोषित धान के समर्थन मूल्य में प्रत्येक कुन्तल पर 715 रुपये का नुकसान है। ऐसे ही एक कुन्तल फसल बेचने में ज्वार में 631 रुपये, बाजरा में 934रुपये, मक्का में 580 रुपये, तुहर/अरहर दाल में 3603 रुपये, मूंग में 3247 रुपये, उड़द में 3237 रुपये, चना में 3178 रुपये, सोयाबीन में 2433 रुपये, सूरजमुखी में 1985 रुपये, कपास में 1680 रुपये, तिल में 5365 रुपये का नुकसान है।
भारतीय किसान यूनियन सरकार से जवाब चाहती है कि आखिर इस वृद्धि के लिए कौन सा फार्मूला अपनाया गया। भारतीय किसान यूनियन किसानों से आह्वान करती है कि इस अन्याय के खिलाफ सामुहिक संघर्ष शुरू करें। भाकियू मांग करती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी कानून बनाया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद करने वाले व्यक्ति पर अपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए।

Friday, May 8, 2020

गांव की सीमा पर मजदूरों के लिए भोजन-पानी व छाया में बैठने की व्यवस्था करें किसान- चौ0 राकेश टिकैत

किसानों की तरह खेतीहर मजदूर भी कृषि की रीढ़, घर लौट रहे प्रवासी श्रमिकों का उत्पीड़न बर्दाश्त नहींः- चौ0 राकेश टिकैत
गांव की सीमा पर मजदूरों के लिए भोजन-पानी व छाया में बैठने की व्यवस्था करें किसान:-भाकियू


भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ0 राकेश टिकैत जी ने हजारों मील का पैदल सफर तय कर रहें मजदूरों के उत्पीड़न व परेशानी की खबरों से आहत होकर प्रशासन को चेताते हुए कहा कि पैदल साईकिल से अपनी मंजिल पर जा रहे प्रवासी श्रमिकों का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं होगा। चौ0 टिकैत ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि किसान एवं मजदूर के समक्ष कोरोना के इस संकट के समय तबाही का एक नया दौर आ खड़ा हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित रोजगार न होने के कारण लोग अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों में खेतीहर मजदूर का कार्य कर रहें है। सरकार की उपेक्षा व गलत नीतियों के चलते आये दिन हजारों श्रमिक पंजाब से चलकर लखनऊ, गोण्डा, बस्ती, फर्रूखाबाद, महराजगंज के लिए गुजर रहे है। इन खेतीहर मजदूरों पर पूलिस का अत्याचार जारी है। जिसकी खबरें समाचार पत्रों के माध्यम से प्राप्त हो रही हैं। महामारी के कारण भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूर बच्चों सहित अपने गांव की हजारों किलोमीटर दूरी की पैदल यात्रा पर निकले हैं।
मेरी किसानों व भारतीय किसान यूनियन के लोगो  से अपील है कि इन प्रवासी श्रमिकों के लिए अपने गांव की सीमा में भोजन पानी एवं छाया या रूकने की उचित व्यवस्था करायें। प्रवासी श्रमिकों को कैम्प में रोककर पैदल चल रहे लोगों की सूचना प्रशासन को देकर इनके लिए बसों की व्यवस्था कराना सुनिश्चित करें।
                                                                                                         

Friday, May 1, 2020

किसानों से गेंहू खरीद पर उतराई, छनाई व सफाई के नाम पर 20 रुपये काटे जाने पर भाकियू खफा, मुख्यमत्री को लिखा पत्र

माननीय,
श्री योगी आदित्यनाथ जी,
मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ।

विषय- उत्तर प्रदेश में किसानों से गेंहू खरीद पर उतराई, छनाई व सफाई के नाम पर 20 रुपये न लिए जाने के सम्बन्ध में।

आदरणीय योगी जी
अवगत कराना है कि उत्तर प्रदेश में किसानों से गेंहू खरीद नीति में उतराई, छनाई व सफाई के नाम पर किसानों से 20 रुपये काटे जा रहे हैं। जो किसानों के साथ अन्याय है। इस वर्ष खराब मौसम के वजह से किसानों की पैदावार में काफी कमी आयी है। किसानों को पहले से ही उनकी लागत का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पा रहा है। गेंहू का समर्थन मूल्य तय करते समय भी इस तरह की कोई शर्त नहीं रखी जाती है। मंडी कानून के तहत भी 3 रुपये लिए जाने का प्रावधान है वह भी उस स्थिति में, जब गेंहू की छनाई व तराजू से तुलाई की गयी हो।


वर्तमान में कम्प्यूटरीकृत कांटों से तुलाई व नवीन तकनीकी के थ्रेसर से कटाई के कारण सफाई की कोई आवश्यकता नहीं है। किसानों द्वारा उतराई का कार्य स्वयं किया जाता है। जिसके चलते मंडी कानून भी गौण हो जाता है। किसानों पर उतराई, छनाई व सफाई के नाम पर खरीद एजेन्सियों द्वारा परिवहन का शुल्क वसूला जा रहा है।
कृषि राज्य का विषय है अगर इस तरह का कोई भी खर्च खरीद एजेन्सियों को दिया जाता है तो उसकी धनराशि राज्य सरकार द्वारा जारी की जाए। खरीद एजेन्सियों का खर्च किसानों से लिया जाना किसान हित पर कुठाराघात है।
आपके आग्रह है कि गेंहू खरीद पर किसानों से लिए जाने वाले 20 रुपये प्रति कुन्तल का शुल्क अविलम्ब समाप्त किया जाए।

Wednesday, April 29, 2020

कोविड-19 महामारी के चलते किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई हेतु 1.5 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज दिए जाने हेतु भारतीय किसान यूनियन का पत्र माननीय प्रधानमंत्री जी के नाम

                                                                                                                                                                                                                                                                                                               29.04.2020
माननीय,
श्री नरेन्द्र मोदी जी,
प्रधानमंत्री भारत सरकार,
साउथ ब्लाॅक नई दिल्ली।

विषय- कोविड-19 महामारी के चलते किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई हेतु 1.5 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज दिए जाने हेतु। 
आदरणीय श्री मोदी जी
आपके संज्ञान में लाना है कि कोविड-19 महामारी के चलते देश में लाॅकडाउन लगाना पड़ा। देशहित में यह अच्छा कदम था, लेकिन लाॅकडाउन की घोषणा उस समय करनी पड़ी जब किसान रबी की कटाई एवं खरीफ की बुवाई की तैयारी कर रहा था। असमय बारिश के कारण किसानों की फसलों की कटाई 15 दिन लेट हो चुकी थी। लाॅकडाउन की घोषणा के बाद किसानों की फसलों की कटाई हेतु लेबर मिलना मुश्किल हो गया था। जिसके चलते किसानों के सामने भारी संकट खड़ा हो गया था। परिवहन के साधन बन्द होने के कारण किसानों की फल, सब्जी या तो खेत में सड़ गयी थी या उनके भाव नहीं मिल रहे थे। जिसके चलते किसानों को अपनी फसलों को फेंकने या नष्ट किये जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। देश के तमाम हिस्सों से टमाटर, लौकी, तुरई, खीरा, अंगूर, सन्तरा, लोकाट, लीची को फेंकने की खबरें आ रही हैं। जिसके चलते किसानों के पास खरीफ की बुवाई का संकट है। किसान असमंजस में है कि आखिर उनकी समस्या सुलझाने के लिए सरकार द्वारा आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाए जा रहें हैं। लाॅकडाउन के चलते सब्जियों व फल के किसानों को 80 प्रतिशत, फूल की किसान को 100 प्रतिशत व दूध के किसान को 50 प्रतिशत नुकसान हुआ है। इस संकट की घडी में भी किसान जान हथेली पर रखकर खेत में कार्य कर रहा है। आज किसानों के दम पर ही देश कोरोना से लड़ पा रहा है। अगर देश में खाद्य सुरक्षा न होती तो कोरोना से ज्यादा भूख से मौतें हो चुकी होती।
भारतीय किसान यूनियन पत्र के माध्यम से भारत सरकार से निम्न मांग करती है-
1. लाॅकडाउन के अन्तर्गत फल, सब्जी, दूध, पोल्ट्री, फिशरीज, मधुमक्खी पालक, फूल उत्पादक किसानों के नुकसान की भरपाई हेतु भारत सरकार द्वारा अविलम्ब 1.5 लाख करोड़ का पैकेज दिया जाए।
2. किसान सम्मान निधि का लाभ पहली किश्त की तरह सभी किसानों को दिया जाए। किसान सम्मान निधि की राशि को 6 हजार रुपये से बढ़ाकर 24 हजार रुपये किया जाए।
3. किसानों की सभी तरह की फसलें कपास, गेंहू, चना, सरसों, सब्जियों की खरीद की जाए।
4. लम्बे समय से मौसम की मार झेल रहे किसानों को गेंहू पर 200 रुपये कुन्तल बोनस दिया जाए।
5. किसानों के सभी तरह के कर्ज के ब्याज पर एक साल की छूट व खरीफ की बुवाई में खाद, बीच की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
6. फल, सब्जी, फूल उत्पादक किसानों की फसली ऋण माफ किए जाएं।
7. देश में अन्न की आत्मनिर्भरता के साथ-साथ दलहन व खाद्य तेल में भी देश को आत्मनिर्भर बनाया जाए। कृषि आयात पर देश की निर्भरता को समाप्त करने हेतु खाद्य तेल व दलहन उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर उनकी फसलों की सरकारी खरीद की जाए।
                                                                                                       आपका

                                                                                              चौ0 राकेश टिकैत                                                                                                                         (राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू)   

Wednesday, September 5, 2018

खेती के मुद्दों को लेकर भारतीय किसान यूनियन 23 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2018 तक हरिद्वार टिकैत घाट से दिल्ली किसान घाट तक होने वाली किसान क्रान्ति यात्रा में शामिल रहेंगे समन्वय समिति के सभी कि


                                               प्रेस नोट
खेती के मुद्दों को लेकर भारतीय किसान यूनियन 23 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2018 तक हरिद्वार टिकैत घाट से दिल्ली किसान घाट तक होने वाली किसान क्रान्ति यात्रा में शामिल रहेंगे समन्वय समिति के सभी किसान संगठन


   भारत के किसान आन्दोलन की समन्वय समिति की बैठक का आयोजन दिल्ली में किया गया। जिसमें किसानों की समस्याओं पर गहनता से विचार कर कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर देश में बड़ा आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया गया। बैठक में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु के किसान नेताओं ने भाग लिया। बैठक में आज एक संवाददाता सम्मेलन के आयोजन का निर्णय हुआ। सम्मेलन में आये किसान नेताओं ने कहा कि खेती किसानी के मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी की देश व प्रदेश की सरकार किसानों से किये गये वादे नहीं निभा पा रही है। सरकार के चार साल पूरे हो जाने के बाद भी जगह-जगह खड़े हो रहे किसान आन्दोलन इस बात का प्रमाण है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसानों की समस्याओं के प्रति गम्भीर नहीं है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार किसान खेती छोड़ रहे हैं। किसानों की आत्महत्यायें रूकी नहीं है, बल्कि बढ़ रही है। किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य न मिलने के कारण कर्ज का भार बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के हित में न होकर बीमा कम्पनियों के हित में कार्य कर रही है। देश के गन्ना किसानों पर लगभग 19 हजार करोड़ रुपया गन्ना सीजन बन्द होने के बाद भी बकाया है। घोषणा पत्र में भारतीय जनता पार्टी ने 14 दिन में गन्ना भुगतान की बात कही थी। भारतीय जनता पार्टी का यह वादा भी किसानों के लिए जुमला ही साबित हुआ है। किसान के नाम पर बने एक आयोग की रिपोर्ट पिछले 15 साल से धूल चाट रही है। उसे लागू करना तो दूर आज तक उस पर संसद में चर्चा भी नहीं हुई। सरकारों द्वारा किसानों का उत्पीड़न जारी है। 
समन्वय समिति द्वारा निर्णय लिया गया कि भारतीय किसान यूनियन द्वारा किसानों के मुद्दों को लेकर 23 सितम्बर 2018 से हरिद्वार टिकैत घाट से किसान क्रान्ति यात्रा चलकर 2 अक्टूबर को किसान घाट नई दिल्ली पहुँचेगी। जिसमें बड़ी संख्या किसान अपने वाहनों के साथ पैदल चलकर दिल्ली तक जायेंगे। 
किसान क्रान्ति यात्रा में समन्वय समिति के सभी संगठनों का पूर्णतः समर्थन है। सभी किसान संगठन किसान क्रान्ति यात्रा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे। 
किसान क्रान्ति यात्रा का आयोजन निम्न मुद्दों को लेकर किया जा रहा है-
1. देश के किसानों की सभी फसलों का (फल, सब्जियां व दूध) वैधानिक उचित और लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य डा. स्वामीनाथन द्वारा सुझाये गये ब2 फार्मूले के अनुसार, कृषि विश्वविद्यालय की वास्तविक लागत के आधार पर तय किया जाए व उस पर कम से कम 50ः लाभ जोड़कर समर्थन मूल्य घोषित किया जाए एवं साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि मंडी में गुणवत्ता मापदंड के उत्पादन का भाव किसी भी कीमत पर समर्थन मूल्य से कम न हो। ऐसा न होने पर दंड का प्रावधान किया जाए। सभी फसलों की शत-प्रतिशत सरकारी खरीद की गारंटी दी जाए।
2. देश के किसानों के सभी तरह के कर्ज माफ किये जाएं। देश के किसानों पर लगभग 80 प्रतिशत कर्ज राष्ट्रीयकृत बैंकों का है। देश के किसानों के सभी तरह के कर्ज (राष्ट्रीयकृत बैंक/सहकारी बैंक/साहुकार) एक ही समय में बिना किसी समय सीमा के भारत सरकर के माध्यम से माफ किये जाएं।
3. पिछले 10 वर्षोंं में खेती में हो रहे नुकसान के कारण सरकारी रिकार्ड के अनुसार 3 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। यह विषय पूरे देश के लिए शर्मनाक है। यह सिलसिला आज भी रूक नहीं पा रहा है। आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार का पुनर्वास करते हुए परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।
4. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को लाभ मिलने के बजाए बीमा कम्पनियों को लाभ मिल रहा है। योजना में बदलाव करते हुए प्रत्येक किसान को ईकाई मानकर सभी फसलों में स्वैच्छिक रूप से लागू किया जाए।
5. किसानों की न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित की जाए। लघु एवं सीमान्त किसानों को 60 वर्ष की आयु के बाद कम से कम 5000 रुपये मासिक पेंशन दी जाए।
6. देश में आवारा पशुओं जैसें-नीलघोडा, जंगली सुअर आदि के द्वारा किसानों की फसलों को पूर्णतः नष्ट कर दिया जाता है। जिससे देश की खाद्य सुरक्षा व खेती दोनों खतरें में हैं। जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु क्षेत्रीय आधार पर वृहद कार्य योजना बनाई जाए। देश के कुछ राज्यों में प्रचलित अन्ना प्रथा पर रोक लगाई जाए।
7. किसानों का बकाया गन्ना भुगतान ब्याज सहित अविलम्ब कराया जाए।
8. किसानों को सिंचाई हेतु नलकूप की बिजली निःशुल्क उपलब्ध कराई जाए।
9. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 10 वर्ष से अधिक डीजल वाहनों के संचालन पर लगाई गई रोक से किसानों के ट्रैक्टर, पम्पिंग सैट, कृषि कार्य में प्रयोग होने वाले डीजल इंजन को (एंटिक कारों के आधार पर) मुक्त किया जाए।
10. मनरेगा को खेती से लिंक किया जाए।
11. खेती में काम आने वाली सभी वस्तुओं को जीएसटी से मुक्त किया जाए।
12. कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखा जाए।
13. देश में पर्याप्त मात्रा में पैदावार होने वाली फसलों का आयात बन्द किया जाए। एसियान मुक्त व्यापार समझौते की आड़ में कई देशों द्वारा ऐसी वस्तुओं का निर्यात किया जा रहा है जिसका वह उत्पादक नहीं है। ऐसे मामलों में प्रतिबंध लगाया जाए।
14. देश में सभी मामलों में भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास अधिनियम 2013 से ही किया जाए। भूमि अधिग्रहण को केन्द्रीय सूची में रखते हुए राज्यों को किसान विरोधी कानून बनाने से रोका जाए।
15. किसानों की समस्याओं पर संसद का विशेष संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाए। जिसमें एक माह तक किसानों की समस्याओं पर चर्चा कर समाधान किया जाए।
संवाददाता सम्मेलन में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ0 राकेश टिकैत, राष्ट्रीय महासचिव चौ0 युद्धवीर सिंह, राजपाल शर्मा राष्ट्रीय महासचिव, कर्नाटक राज्य रैयत संघ के प्रदेश अध्यक्ष के0टी0 गंगाधर, कर्नाटक राज्य रैयत संघ के उपाध्यक्ष जी0टी0 रामास्वामी, सुभाष चौधरी अध्यक्ष राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भाकियू, हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष रतनसिंह मान, पंजाब के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हरेन्द्र सिंह लाखोवाल, मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश सिंह, दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष विरेन्द्र डागर मौजूद रहे।
संवाददाता में पधारे सभी संवाददाताओं/छायाकार/कैमरामेन का आभार व्यक्त करते हुए आशा करता हूँ कि आपके द्वारा किसान क्रान्ति यात्रा में भरपूर सहयोग दिया जाएगा।

Friday, October 27, 2017

प्रदेश सरकार द्वारा घोषित गन्ना मूल्य नाकाफी, चीनी मिलों से सरकार की मिलीभगत के चलते गन्ना किसानों के हितों पर किया कुठाराघातः- चौ0 राकेश टिकैत

प्रदेश सरकार द्वारा घोषित गन्ना मूल्य नाकाफी, चीनी मिलों से सरकार की मिलीभगत के चलते गन्ना किसानों के हितों पर किया कुठाराघातः- चौ0 राकेश टिकैत
 गन्ना मूल्य के विरोध में कल भाकियू प्रदेश भर में जिला मुख्यालयों पर जलायेगी गन्ने की होलीः- भाकियू
                                                                                               दिनांक 27 अक्टूबर 2017

उत्तर प्रदेश के चुनावों में गन्ना मूल्य, गन्ना बकाया व घटतौली का मुद्दा चुनावी जनसभाओं में उठाने वाले माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी अपनी सरकार द्वारा ही उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को गन्ने का लाभकारी मूल्य दिलाने में असफल रहे। गन्ना किसानों की भावनाओं से खेलकर किसानों के दम पर सत्ता में आयी भारतीय जनता पाटी की सरकार द्वारा पैराई सत्र 2017-18 हेतु गन्ने का मूल्य घोषित किया गया। गन्ना मूल्य में 10 रुपये की वृद्धि कर गन्ना किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार में भी गन्ना किसानों के साथ पूर्ववर्ती सरकारों जैसा नियमित व्यवहार किया गया है। गन्ना मूल्य में वृद्धि तुलनात्मक रूप से महंगाई दर में हुई वृद्धि से भी कम है। 
भारतीय जनता पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश के चुनाव का दौरान जारी संकल्प पत्र में उचित और लाभकारी मूल्य देने की बात कही थी लेकिन मिल मालिक और शर्मायेदारों के दबाव में उत्तर प्रदेश की सरकार गन्ना किसानों को लागत एवं श्रम पर आधारित मूल्य दिलाने में भी नाकाम रही। वर्तमान में गन्ना इस वर्ष में डीजल, बिजली, पेस्टीसाईड्स, खाद के दाम बढ़ने से गन्ना किसानों की गन्ना किसानों की लागत में काफी वृद्धि हुई है। गन्ना किसानों की एक कुंतल गन्ना पैदा करने में लगभग 325 रुपये लागत आ रही है। उत्तर प्रदेश में गन्ना मूल्य तय करने को लेकर आयोजित बैठक में भी किसानों ने अपनी लागत का आंकड़ा गन्ना विभाग को दिया था। तमाम परिस्थितियों को दरकिनार करते हुए एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार चीनी मिलों के पक्ष में खड़ी दिखाई प्रतीत हो रही है। भाजपा के वादे के अनुसार गन्ना किसानों को 450 रुपये प्रति कुन्तल दाम मिलना चाहिए, लेकिन गन्ना किसानों का इस्तेमाल राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक के रूप में किया जाता रहा है। इतिहास गवाह है कि सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दल केवल चुनावी वर्ष में गन्ने के मूल्य में थोडी वृद्धि करते हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार चीनी मिल मालिकों के संगठन के दबाव में कार्य करती है। पिछले वर्ष अखिलेश यादव द्वारा गन्ना मूल्य में 25 रुपये की वृद्धि की थी। जिसको भाजपा के प्रवक्ताओं द्वारा नाकाफी बताकर 450 रुपये प्रति कुन्तल की मांग कर रहे थे, आज वही प्रवक्ता 10 रुपये की वृद्धि को मील का पत्थर साबित करने में लगे हैं। उत्तर प्रदेश की करीब 50 लाख बेबस गन्ना किसानों में सरकार के प्रति बेहद रोष है। वर्तमान सत्र में रिकवरी के मामले में उत्तर प्रदेश ने सभी राज्यों को पीछे छोड़ दिया है, जिसका लाभ भी चीनी मिल मालिकों को है। 
भारतीय किसान यूनियन सरकार द्वारा घोषित मूल्य पर संतुष्ट नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करती है कि गन्ना मूल्य पर पुनर्विचार करते हुए अपने संकल्प पत्र में किये गये वादे के अनुसार गन्ने का मूल्य 450 रुपये प्रति कुन्तल घोषित कर किसानों को लाभकारी मूल्य दें अन्यथा भाकियू पूरे प्रदेश में इसके विरूद्ध आन्दोलन करेगी। कल भाकियू प्रदेश भर में जिला मुख्यालयों पर गन्ना जलाकर अपना विरोध दर्ज करायेगी।