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Tuesday, June 2, 2020

सीजन 2020-21 खरीफ की फसलों की खरीद के लिए घोषित समर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा, यह समर्थन मूल्य कुल लागत (सी-2) पर घोषित नहीं :- चौ0 राकेश टिकैत

                                                                     प्रेस नोट
सीजन 2020-21 खरीफ की फसलों की खरीद के लिए घोषित समर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा, यह समर्थन मूल्य कुल लागत (सी-2) पर घोषित नहीं :- चौ0 राकेश टिकैत
पिछले पांच वर्षों की सबसे कम मूल्य वृद्धिः-भाकियू


भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ0 राकेश टिकैत जी ने हाल में घोषित सीजन 2020-21 के लिए निर्धारित खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों के साथ धोखा बताते हुए कहा कि एक बार फिर सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है। यह देश के भंडार भरने वाले और खाद्य सुरक्षा की मजबूत दीवार खडी करने वाले किसानों के साथ धोखा है। यह वृद्धि पिछले पांच वर्षों में सबसे कम वृद्धि है। सरकार ने कृषि विश्वविद्यालयों की लागत के बराबर ही समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया है। किसानों को कुल लागत सी2 पर 50 प्रतिशत जोड़कर बनने वाले मूल्य के अलावा कोई मूल्य मंजूर नहीं है। सरकार महंगाई दर नियंत्रण करने के लिए देश के किसानों की बलि चढ़ा रही है। इसी किसान के दम पर सरकार कोरोना जैसी महामारी से लड़ पायी है। इस महामारी में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का नहीं मांग का संकट बना हुआ है। सरकार द्वारा धान का समर्थन मूल्य वर्ष 2016-17 में 4.3 प्रतिशत, 2017-18 में 5.4 प्रतिशत, 2018-19 में 12.9 प्रतिशत, 2019-20 में 3.71 प्रतिशत वृद्धि की गयी थी। वर्तमान सीजन 2020-21 में यह पिछले पांच वर्षों की सबसे कम 2.92 प्रतिशत वृद्धि है। सरकार द्वारा घोषित धान के समर्थन मूल्य में प्रत्येक कुन्तल पर 715 रुपये का नुकसान है। ऐसे ही एक कुन्तल फसल बेचने में ज्वार में 631 रुपये, बाजरा में 934रुपये, मक्का में 580 रुपये, तुहर/अरहर दाल में 3603 रुपये, मूंग में 3247 रुपये, उड़द में 3237 रुपये, चना में 3178 रुपये, सोयाबीन में 2433 रुपये, सूरजमुखी में 1985 रुपये, कपास में 1680 रुपये, तिल में 5365 रुपये का नुकसान है।
भारतीय किसान यूनियन सरकार से जवाब चाहती है कि आखिर इस वृद्धि के लिए कौन सा फार्मूला अपनाया गया। भारतीय किसान यूनियन किसानों से आह्वान करती है कि इस अन्याय के खिलाफ सामुहिक संघर्ष शुरू करें। भाकियू मांग करती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी कानून बनाया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद करने वाले व्यक्ति पर अपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए।

Wednesday, April 29, 2020

कोविड-19 महामारी के चलते किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई हेतु 1.5 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज दिए जाने हेतु भारतीय किसान यूनियन का पत्र माननीय प्रधानमंत्री जी के नाम

                                                                                                                                                                                                                                                                                                               29.04.2020
माननीय,
श्री नरेन्द्र मोदी जी,
प्रधानमंत्री भारत सरकार,
साउथ ब्लाॅक नई दिल्ली।

विषय- कोविड-19 महामारी के चलते किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई हेतु 1.5 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज दिए जाने हेतु। 
आदरणीय श्री मोदी जी
आपके संज्ञान में लाना है कि कोविड-19 महामारी के चलते देश में लाॅकडाउन लगाना पड़ा। देशहित में यह अच्छा कदम था, लेकिन लाॅकडाउन की घोषणा उस समय करनी पड़ी जब किसान रबी की कटाई एवं खरीफ की बुवाई की तैयारी कर रहा था। असमय बारिश के कारण किसानों की फसलों की कटाई 15 दिन लेट हो चुकी थी। लाॅकडाउन की घोषणा के बाद किसानों की फसलों की कटाई हेतु लेबर मिलना मुश्किल हो गया था। जिसके चलते किसानों के सामने भारी संकट खड़ा हो गया था। परिवहन के साधन बन्द होने के कारण किसानों की फल, सब्जी या तो खेत में सड़ गयी थी या उनके भाव नहीं मिल रहे थे। जिसके चलते किसानों को अपनी फसलों को फेंकने या नष्ट किये जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। देश के तमाम हिस्सों से टमाटर, लौकी, तुरई, खीरा, अंगूर, सन्तरा, लोकाट, लीची को फेंकने की खबरें आ रही हैं। जिसके चलते किसानों के पास खरीफ की बुवाई का संकट है। किसान असमंजस में है कि आखिर उनकी समस्या सुलझाने के लिए सरकार द्वारा आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाए जा रहें हैं। लाॅकडाउन के चलते सब्जियों व फल के किसानों को 80 प्रतिशत, फूल की किसान को 100 प्रतिशत व दूध के किसान को 50 प्रतिशत नुकसान हुआ है। इस संकट की घडी में भी किसान जान हथेली पर रखकर खेत में कार्य कर रहा है। आज किसानों के दम पर ही देश कोरोना से लड़ पा रहा है। अगर देश में खाद्य सुरक्षा न होती तो कोरोना से ज्यादा भूख से मौतें हो चुकी होती।
भारतीय किसान यूनियन पत्र के माध्यम से भारत सरकार से निम्न मांग करती है-
1. लाॅकडाउन के अन्तर्गत फल, सब्जी, दूध, पोल्ट्री, फिशरीज, मधुमक्खी पालक, फूल उत्पादक किसानों के नुकसान की भरपाई हेतु भारत सरकार द्वारा अविलम्ब 1.5 लाख करोड़ का पैकेज दिया जाए।
2. किसान सम्मान निधि का लाभ पहली किश्त की तरह सभी किसानों को दिया जाए। किसान सम्मान निधि की राशि को 6 हजार रुपये से बढ़ाकर 24 हजार रुपये किया जाए।
3. किसानों की सभी तरह की फसलें कपास, गेंहू, चना, सरसों, सब्जियों की खरीद की जाए।
4. लम्बे समय से मौसम की मार झेल रहे किसानों को गेंहू पर 200 रुपये कुन्तल बोनस दिया जाए।
5. किसानों के सभी तरह के कर्ज के ब्याज पर एक साल की छूट व खरीफ की बुवाई में खाद, बीच की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
6. फल, सब्जी, फूल उत्पादक किसानों की फसली ऋण माफ किए जाएं।
7. देश में अन्न की आत्मनिर्भरता के साथ-साथ दलहन व खाद्य तेल में भी देश को आत्मनिर्भर बनाया जाए। कृषि आयात पर देश की निर्भरता को समाप्त करने हेतु खाद्य तेल व दलहन उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर उनकी फसलों की सरकारी खरीद की जाए।
                                                                                                       आपका

                                                                                              चौ0 राकेश टिकैत                                                                                                                         (राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू)   

Thursday, April 6, 2017

देश के गन्ना किसानों को संरक्षित करने के लिए चीनी आयात के फैसले को निरस्त करने के सम्बन्ध में।



माननीय,
श्री नरेन्द्र मोदी जी,
प्रधानमंत्री भारत सरकार,
साउथ ब्लॉक नई दिल्ली।

विषयः देश के गन्ना किसानों को संरक्षित करने के लिए चीनी आयात के फैसले को 
       निरस्त करने के सम्बन्ध में।


मान्यवर,
समाचार पत्रों के माध्यम से संज्ञान में आया है कि भारत सरकार में 5 लाख टन शुल्क मुक्त आयात किये जाने का फैसला किया है। जिसका कारण देश में चीनी के उत्पादन में गिरावट बताई गयी है। भारत दुनिया में चीनी का चौथा बड़ा उत्पादक व उपभोक्ता देश है। देश में चीनी का सीजन अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस वर्ष देश में 2.25 करोड टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। यह अनुमान प्रारम्भिक आंकडा है। देश में चीनी का उत्पादन ज्यादा भी हो सकता है। पिछले वर्षों में पूर्व की सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में कच्ची चीनी का शुल्क मुक्त आयात किया गया। जिससे चीनी के दाम घरेलू बाजार में निम्न स्तर पर आ गये थे। देश का शुगर उद्योग किसानों का भुगतान भी समय से नहीं कर पा रहा था। जिससे गन्ना किसानों के क्षेत्रों में भी आत्महत्या की संख्या में काफी वृद्धि हुई थी।
देश में पिछले वर्ष 23.4 मिलियन टन व 2015-16 में 25.1 मिलियन टन का बम्पर उत्पादन हुआ था। पिछले वर्ष का गन्ना सत्र समाप्त होने के बाद सितम्बर में देश में 4.85 मिलियन टन चीनी मिलों के पास खपत से ज्यादा थी। गन्ने के बुआई को देखते हुए आगामी गन्ना सीजन में भी 25.5 मिलियन टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। पूर्व में भी 4 मिलियन टन चीनी का जो आयात किया था वह चीनी भी अभी बाजार में उपलब्ध है। देश में चीनी की कोई कमी नहीं है।
विभिन्न परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अगर सस्ती कच्ची चीनी का आयात किया जाता है तो कई वर्षों से मार झेल रहे गन्ना किसानों के फिर से बुरे दिन चालू हो जायेंगे। 
भारतीय किसान यूनियन आपसे आग्रह करती हैं कि कच्ची चीनी आयात के किसान विरोधी फैसले को अविलम्ब वापिस लिया जाए।
  सदैव आपका

चौ. राकेश टिकैत
            (राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू)

Tuesday, April 7, 2015

यह आत्महत्या ऐसे नहीं रुकेगी

यह आत्महत्या ऐसे नहीं रुकेगी

Prevent Farmers sucide

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जय जवान, जय किसान अथवा अन्नदाता देवो भवः जैसे नारों के साथ सत्ता में आने वाली सरकारें किसानों के प्रति हमेशा संवेदनहीन रही हैं। नहीं तो आज प्रत्येक बीस मिनट में एक किसान और कर्ज के कारण सालाना 12,000 किसान आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होते! प्रधानमंत्री मोदी पुराने कानूनों को बदलने की बात जरूर कहते हैं, पर एनडीए सरकार के दस माह के कार्यकाल में किसान-विरोधी कानूनों को बदलने का साहस अब तक नहीं दिखा है। अभी उत्तर भारत में हो रही बारिश व ओलावृष्टि से फसलों की हुई बर्बादी ने ही कई किसानों को आत्महत्या के रास्ते पर धकेला है। उत्तर प्रदेश में लगभग एक महीने में 135 किसानों ने आत्महत्या की है। बेमौसम बारिश की वजह से किसानों की 70 प्रतिशत से अधिक फसलें बर्बाद हो चुकी हैं, लेकिन सरकारें अविलंब राहत देने के बजाय नुकसान के आकलन संबंधी आंकड़ों में ही उलझी है।

किसानों की आत्महत्या की बड़ी वजह सरकार की दोषपूर्ण नीति है। अपने यहां प्राकृतिक आपदा के बाद मुआवजे के आकलन की प्रक्रिया बेहद लंबी एवं दोषपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में रेवेन्यू मैनुअल, 1940 के अध्याय 26 (कृषि आपदा के मामलों में लगान तथा राजस्व में अनुतोष) के आधार पर क्षेत्रफल का सर्वे किया जाता है। यह किसानों को फसलों का मुआवजा देने के लिए नहीं, बल्कि लगान एवं राजस्व माफ करने के लिए बनाया गया था। इस कानून में प्रावधान है कि सर्वे का आधार खेत न होकर, क्षेत्रफल होगा। क्षेत्रफल के सर्वे के आधार पर किसानों को उनकी फसलों का सही मुआवजा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि प्रत्येक खेत का नुकसान अलग होता है।

दिक्कत यह भी है कि किसानों को मुआवजे के रूप में मिलने वाली राशि उनके श्रम की मजदूरी के समकक्ष नहीं होती। वहीं यह प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि किसान आस ही छोड़ देता है। असल में, लेखपाल की रिपोर्ट तहसीलदार, अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) और राहत आयुक्त के यहां से होते हुए मुख्य सचिव तक पहुंचती है। मुख्य सचिव इसे मांग पत्र बनाकर मुआवजे की क्षतिपूर्ति हेतु केंद्र के कृषि मंत्रालय को भेजता है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि राज्य के दौरे पर आते हैं। दौरे के बाद उनके साथ कृषि उत्पादन नियंत्रक की बैठक होती है। केंद्रीय दल को अगर नुकसान के प्रतिशत पर आपत्ति होती है, तो दूसरा मांग पत्र केंद्र सरकार को भेजा जाता है। यह मुआवजा तभी मिल पाता है, जब नुकसान का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक हो। इस प्रक्रिया से किसानों तक पैसा पहुंचने में दो वर्ष लग जाते हैं, और तब तक कर्ज के कारण किसान या तो जान दे देता है, अथवा अपनी जमीन बेचने को मजबूर होता है।

यदि किसानों की आत्महत्या रोकनी है, तो देश में जलवायु के क्षेत्रों के आधार पर आपदा राहत नीति बनानी होगी। इसमें किसानों की फसलों के नुकसान की भरपाई का आकलन करने के लिए उत्पादन गुणा न्यूनतम समर्थन मूल्य का फॉर्मूला अपनाना चाहिए। जरूरी यह भी है कि बिना किसी देरी के राहत का एक हिस्सा राज्य सरकार को जारी किया जाए और आपदा की स्थिति से निपटने के लिए किसानों के लिए अलग से आकस्मिक निधि बनाई जाए। प्राकृतिक आपदा से निपटने हेतु पुराने कानून को समाप्त कर तत्काल किसान हितैषी नए अध्यादेश लाने की तत्परता अगर सरकार दिखाए, तभी अन्नदाताओं की मौत रुक सकती है।

-लेखक भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं

Friday, March 20, 2015

प्रेस नोट भाकियू के धरने के तीसरे दिन भी संसद मार्ग पर डटे हजारों किसान, आम आदमी पार्टी के सांसद गुरसेवक सिंह ने धरने पर पहुंचकर कहा कि किसानों की आवाज संसद में उठाऊंगाः भाकियू


प्रेस नोट
भाकियू के धरने के तीसरे दिन भी संसद मार्ग पर डटे हजारों किसान, आम आदमी पार्टी के सांसद गुरसेवक सिंह ने धरने पर पहुंचकर कहा कि किसानों की आवाज संसद में उठाऊंगाः भाकियू
भाकियू ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर खुुली बहस के लिए तैयारः चै. टिकैत
आज दिनांक 20 मार्च 2015 को भारतीय किसान यूनियन का दिल्ली में संसद मार्ग पर जारी है। किसानों ने मंच के माध्यम से अपने दर्द को रखा। धरने के तीसरे दिन भी किसान बिना किसी सुविध के संसद मार्ग पर जमे है। सरकार द्वारा आवश्यक इंतजाम न किये जाने का दर्द भी किसानों को है। आज आम आदमी पार्टी के सांसद गुरसेवक सिंह ने कहा कि देश की सरकारों ने अन्नदाता के साथ कभी न्याय नहीं किया। यहां पर आये किसानों की बात को मैं देश की संसद में पहुंचाने का कार्य करूगा। आम आदमी पार्टी देश के किसानों के साथ है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चै. नरेश टिकैत व अखिल भारतीय किसान आन्दोलन की समन्वय समिति के समन्वयक चै. युद्धवीर सिंह ने माननीय प्रधानमंत्री जी को संयुक्त पत्र लिखकर भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर खुली बहस कराये जाने हेतु निमन्त्रण दिया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमैटी उत्तर प्रदेश की तरफ से नसीब पठान सदस्य विधान परिषद ने भी किसानों के बीच पहुंचकर अपना समर्थन दिया।
धरने को राजपाल शर्मा राष्ट्रीय महासचिव, विरेन्द्र डागर दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष, जगदीश सिंह, हरनाम सिंह वर्मा, राजा रिगा तमिल नाडु फार्मर एसोसिशएशन, के.टी. गंगाधर, सहित कई किसान नेताओं ने सम्बोधित किया।

माननीय,
श्री नरेन्द्र मोदी जी,
प्रधानमंत्री भारत सरकार,
7, रेस क्राॅस रोड, नई दिल्ली।
विषयः- राजग सरकार को भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर बहस हेतु खुला निमन्त्रण।
आदरणीय श्री मोदी जी,
समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि आपकी सरकार द्वारा कुछ राजनीतिक दल के नेताओं को भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर खुली बहस हेतु निमन्त्रण दिया है।
भूमि अधिग्रहण बिल का मसौदा देश के किसानों के लिए बहुत चिंता का विषय है। हम किसानों के लिए बहुत आवश्यक है कि इसकी अच्छाई और बुराई पर बहस होनी चाहिए।
हम किसान संगठन के लोग इस विषय पर आपकी सरकार व सरकार के प्रतिनिधियों से खुली बहस के तैयार है।
हमारा आपसे निवेदन है कि आप इस विषय पर किसानों के साथ खुली चर्चा के लिए सरकार की तरफ से प्रतिनिधि नियुक्त किये जाने का कष्ट करें। इस विषय पर चर्चा हेतु सरकार सुविधानुसार समय और जगह का चुनाव कर भारतीय किसान यूनियन के प्रतिनिधियों को अवगत कराने का कष्ट करें। क्योंकि यह भविष्य में किसानों की आजीविका से जुडा सवाल है।
देशभर से पिछले तीन दिनों से 20 हजार से अधिक किसान भूमि अधिग्रहण बिल व खेती किसानी से जुडे़ मुद्दों को लेकर संसद मार्ग पर धरनारत है। किसानों को केवल इस बात का इंतजार है कि क्या देश के प्रधानमंत्री किसानों से चाय पर चर्चा या मन की बात करने के इच्छुक है, या नहीं।
देश के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भूमि अधिग्रहण बिल 2015 पर चर्चा के लिए तैयार है।
आशा है कि आपके द्वारा जल्द से जल्द इस विषय पर किसानों से चर्चा की जाएगी।
भवदीय

चै. नरेश टिकैत चै. युद्धवीर सिंह
(राष्ट्रीय अध्यक्ष भाकियू)  समन्वयक
 (अखिल भारतीय किसान आन्दोलन समन्वय समिति)

                                                                      भवदीय

   चै. राकेश टिकैत
( राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू  )




Friday, January 9, 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द किये जाने के सम्बंध में।

भारतीय किसान यूनियन द्वारा भूमि अधिग्रहण अधयादेश के विरोध में उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में 7 जनवरी  को जिलाधिकारी कार्यालयों में प्रदर्शन कर अधयादेश को रद्द करने की मांग करते हुए  देश के प्रधानमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन दिया गया | भाकियू के अध्यक्ष चौ.नरेश टिकैत ने  मुज़फ्फरनगर  के धरने में शामिल होकर अपना विरोध दर्ज करते हुए कहा कि किसान विरोधी कानून मंजूर नहीं है |

ज्ञापन
माननीय,
      श्री नरेन्द्र मोदी जी
      प्रधानमंत्री भारत सरकार
      साउथ ब्लाक, नई दिल्ली।
विषयः- भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द किये जाने के सम्बंध में।
मान्यवर,
देश में जब खेती योग्य जमीने किसानों से कोडियों के भाव अधिग्रहित कर उद्योगपतियों को दी जा रही थी, तो देश के किसानों ने भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध मुखर आन्दोलन किया। जिसके कारण अनेक राज्यों में किसानों और पुलिस के बीच टकराव के दौरान कई किसानों की जाने भी चली गई, लेकिन किसान इस लडाई को अंजाम तक पहुचाने के लिए जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हट रहे थे। किसानों के संघर्ष और बलिदानों के बाद भारत सरकार व देश के राजनैतिक दलों पर दबाव के कारण भारत सरकार ने 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द कर भूमि अधिग्रहण कानून ‘ उचित मुआवजे का अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण में पादर्शिता, पुनर्वास एवं पुनस्र्थापना अधिनियम 2013’ को लाया गया। 122 साल पुराने कानून के रद्द होने से किसानों को यह अहसास हुआ था कि हम भी आजाद देश के नागरिक है और अब हमारी जमीन को जबरन नहीं छीना जा सकता। इस कानून को बनाते समय दो सर्वदलीय बैठकें, बिल पर संसद में चर्चा तथा विपक्ष के दो महत्वपूर्ण संशोधन को मानते हुए सरकार ने कानून में शामिल कर लिया था। संसद की स्थायी समिति द्वारा की गयी 28 सिफारिशों में से 26 को स्वीकार कर कानून में शामिल कर किया गया था। भारतीय जनता पार्टी द्वारा भी इस बिल का समर्थन किया गया था।
भारत सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश में पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत तथा निजी कम्पनियों के लिए 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किया जाना, सामाजिक प्रभाव अध्ययन की अनिवार्यता न्यूनतम बहुफसली खेती की जमीन के अधिग्रहण करने के प्रावधान को समाप्त करने तथा धारा 24(2) में पांच वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास के नाम पर जमीन की लूट को कानूनन मान्यता दे दी गई है। पांच वर्ष के अंदर अगर अधिग्रहित भूमि का उपयोग नहीं होता है। तो उसे मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया है। अब बिना उपयोग किये हुए भी भूमि लम्बे समय तक उद्योगपति अपने पास रख सकते है। (सेक्शन 101 में संशोधन) सरकार ने खुद को नये कानून को लागू करने में पैदा होने वाली किसी भी कठिनाई को हटाने के लिए नोटीफिकेशन जारी करने की समय सीमा को दो से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया है।
भारत के किसानों को आशंका है कि इस कानून से  देश के किसानों की जबरन भूमि अधिग्रहण का रास्ता साफ होगा।
भारतीय किसान यूनियन दिनांक 07 जनवरी 2015 को जिलाधिकारी कार्यालय मुज़फ्फरनगर  उत्तर प्रदेश पर प्रदर्शन के माध्यम से मांग करती है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में लाए गए अध्यादेश को अविलम्ब रद्द किया जाए।
                                                                                                                                                         भवदीय

                                                                                                                                                      नरेश टिकैत 



Wednesday, December 25, 2013

खाईखेडी शुगर मिल सुरक्षा कर्मियों ने लखनौती के 50 वर्ष के किसान प्रहलाद की कि गोली मरकर हत्या

                                        प्रेस नोट

आज दिनांक 25 दिसम्बर को जनपद के खाईखेडी शुगर मिल में सुबह 5 बजे  लखनौती के 50 वर्ष के किसान प्रहलाद की मिल सुरक्षा कर्मियों ने घटतौली के मामूली विवाद में गोली मरकर हत्या कर दी व् दो मोटरसाइकल में आग लगा दी,इसके बाद मिल कर्मियों ने किसानो को बहला –फुसलाकर प्रहलाद का शव जबरदस्ती उठाने का प्रयास किया जिसका भाकियू के कार्यकर्ताओ ने विरोध करते हुए राजू अहलावत को सूचना दी ,किसानो की सूचना पर भाकियू के जिलाध्यक्ष राजू अहलावत कुछ कार्यकर्ताओ के साथ सुबह 7 बजे  शुगर मिल पर आ गए ।राजू अहलावत ने कहा की किसानो की हत्या नहीं होने दी जाएगी तथा धरने पर बैठ गए ,जिसकी  सुचना पर झैूत्र के हजारो किसान मिल पर आ गए ।

भाकियू के जिलाध्यक्ष राजू अहलावत ने दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही ,मृतक के परिवार को 20 लाख मुआवजा व् नौकरी की मांग की ,कुछ देर बाद धरने पर अपर जिलाधिकारी प्रशासन ,एसपी सिटी ने आकर किसानो से बात की किसानो ने आपनी मांग से अवगत करते हुए कहा कि मिल कर्मियों की गुंडागर्दी बर्दास्त नहीं होगी ।

इसके बाद भाकियू के प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने मिल पर जाकर आर –पर की लड़ाई का ऐलान कर दिया ।जिससे प्रशासन के हाथ पाव फुल गए, अपर जिलाधिकारी प्रशासन ने मिल प्रशासन से बात कर 10 लाख व् नौकरी देने की बात कही जिसे भाकियू के प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने अस्वीकार कर दिया ।
इसके बाद 2 बजे अपर जिलाधिकारी प्रशासन ने मिल की तरफ से 15 लाख का मुआवजा व् 5 लाख किसान दुर्घटना बीमा से दिए जाने व् मृतक के बेटे को नौकरी दिए जाने व् सुरक्षा कर्मियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की बात कही जिस पर किसानो ने सहमति व्यक्त करते हुए शव को भिजवा दिया ।

धरने में भाकियू के जिलाध्यक्ष राजू अहलावत, प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत,नीरज पहलवान .अंकित चौधरी ब्लाक अध्यक्ष सदर ,सतेन्द्र दतिया ,अजनवीर ,राजसिंह त्यागी ,संजय चौधरी ,विजय शास्त्री सहित हजारो किसान शामिल रहे ।

                                                                भवदीय
                                                            (धर्मेन्द्र मलिक )
                                                   कार्यालय प्रभारी भाकियू


Monday, December 9, 2013

उत्तर प्रदेश में गन्ने को लेकर ग़दर ,हिली अखिलेश सरकार






















उत्तर प्रदेश में गन्ना किसान बकाया भुगतान व् गन्ना मुल्य में वृधि को लेकर सरकार के खिलाफ सडको पर है .भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौ.नरेश टिकैत के आह्वान पर प्रदेश के गन्ना किसानो ने समाधान न होने पर 5 दिसम्बर को प्रदेश भर में सडको व् रेल मार्ग को जाम कर दिया.।चौ.टिकैत ने कहा कि जाम से आम जन की दिक्कत हुए ,लेकिन सरकार के किसान विरोधी रुख के कारन अन्नदाता को यह सब करना पड़ा....किसान ने करवट बदली तो लखनऊ तक गूंज सुनाई दी ।