भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रदद कराने के लिए भाकियू करेगी देशव्यापी आन्दोलन, उत्तर प्रदेश के सभी मुख्यालयों पर सात जनवरी को भाकियू करेगी प्रदर्शन: भाकियू
किसानों की जोर-जबरदस्ती से जमीन छीनने का कानून है नया भूमि अध्यादेश: राकेश टिकैत
मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के सम्बंध में लाए गए अध्यादेश से स्पष्ट है कि कार्पोरेट को किसानों की लूट को छूट देने वाला अध्यादेश है। भारतीय किसान यूनियन भारत सरकार से इस अध्यादेश को तत्काल वापिस लेने की मांग करती है। सरकार ने उचित मुआवजे का अधिकार एवं पुनस्र्थापना अधिनियम 2013 में किसानों के पक्ष के सभी प्रावधानों को संशोधित कर, वर्तमान कानून को 1894 के अंगे्रजी कानून से भी बदत्तर बना दिया है।
देश के विभिन्न राज्यों में भूमि अधिग्रहण के विरोध में विभिन्न हिंसक आन्दोलन और सैकड़ों किसानों की जान की कुर्बानी के दबाव के चलते दो साल तक व्यापक बहस के बाद भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया गया था। कई राज्यों में भूमि अधिग्रहण के आन्दोलन से सरकार भी बदल गई थी। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के बल पर किसानों की जमीनें सस्ते में खरीद कर उद्योगपतियों को देने की मान्यता देता था।
भारतीय किसान यूनियन ने कई बडे आन्दोलन कर पुराने भूमि अधिग्रण बिल को रद्द कराने में अहम भूमिका निभाई थी। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चैधरी राकेश टिकैत के नेतृत्व में संसद की स्थाई समिति के समक्ष देश के किसानों का पक्ष रखते हुए अपनी बात मनवाने में सफलता हासिल की थी।
भारत सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश में पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत तथा निजी कम्पनियों के लिए 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किया जाना, सामाजिक प्रभाव अध्ययन की अनिवार्यता न्यूनतम बहुफसली खेती की जमीन के अधिग्रहण करने के प्रावधान को समाप्त करने तथा धारा 24(2) में पांच वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास के नाम पर जमीन की लूट को कानूनन मान्यता दे दी गई है। पांच वर्ष के अंदर अगर अधिग्रहित भूमि का उपयोग नहीं होता है। तो उसे मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया है। अब बिना उपयोग किये हुए भी भूमि लम्बे समय तक उद्योगपति अपने पास रख सकते है। (सेक्शन 101 में संशोधन) सरकार ने खुद को नये कानून को लागू करने में पैदा होने वाली किसी भी कठिनाई को हटाने के लिए नोटीफिकेशन जारी करने की समय सीमा को दो से बढ़ाकर 5 साल कर लिया गया है ताकि किसानों की जमीन की लूट आसान बनी रहे। मोदी सरकार के गठन के बाद से ही किसानों में सरकार की तरफ से की जा रही है, बयानबाजी से यह आशंका बनी हुई थी कि सरकार द्वारा अब तक बने जनहितेषी कानूनों में बदलाव किया जाएगा, जो सच साबित हुई।
भारतीय किसान यूनियन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने हेतु देशव्यापी आन्दोलन की शुरूआत 7 जनवरी 2015 से उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन कर अपना विरोध दर्ज कराएगी। भारतीय किसान यूनियन के वार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन 16 से 18 जनवरी 2015 तक इलाहाबाद में किया जाएगा। जिसमें भारतीय किसान यूनियन भूमि अधिग्रहण बिल, फसलांे का लाभकारी मूल्य, देश में राॅ शुगर के आयात पर प्रतिबंध व विश्व व्यापार संगठन के विरोध में आन्दोलन की बडी रणनीति की घोषणा करेगी।
भवदीय
चैधरी राकेश टिकैत
(राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू)
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रदद कराने के लिए भाकियू करेगी देशव्यापी आन्दोलन, उत्तर प्रदेश के सभी मुख्यालयों पर सात जनवरी को भाकियू करेगी प्रदर्शन: भाकियू
किसानों की जोर-जबरदस्ती से जमीन छीनने का कानून है नया भूमि अध्यादेश: राकेश टिकैत
मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के सम्बंध में लाए गए अध्यादेश से स्पष्ट है कि कार्पोरेट को किसानों की लूट को छूट देने वाला अध्यादेश है। भारतीय किसान यूनियन भारत सरकार से इस अध्यादेश को तत्काल वापिस लेने की मांग करती है। सरकार ने उचित मुआवजे का अधिकार एवं पुनस्र्थापना अधिनियम 2013 में किसानों के पक्ष के सभी प्रावधानों को संशोधित कर, वर्तमान कानून को 1894 के अंगे्रजी कानून से भी बदत्तर बना दिया है।
देश के विभिन्न राज्यों में भूमि अधिग्रहण के विरोध में विभिन्न हिंसक आन्दोलन और सैकड़ों किसानों की जान की कुर्बानी के दबाव के चलते दो साल तक व्यापक बहस के बाद भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया गया था। कई राज्यों में भूमि अधिग्रहण के आन्दोलन से सरकार भी बदल गई थी। भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के बल पर किसानों की जमीनें सस्ते में खरीद कर उद्योगपतियों को देने की मान्यता देता था।
भारतीय किसान यूनियन ने कई बडे आन्दोलन कर पुराने भूमि अधिग्रण बिल को रद्द कराने में अहम भूमिका निभाई थी। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चैधरी राकेश टिकैत के नेतृत्व में संसद की स्थाई समिति के समक्ष देश के किसानों का पक्ष रखते हुए अपनी बात मनवाने में सफलता हासिल की थी।
भारत सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश में पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत तथा निजी कम्पनियों के लिए 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किया जाना, सामाजिक प्रभाव अध्ययन की अनिवार्यता न्यूनतम बहुफसली खेती की जमीन के अधिग्रहण करने के प्रावधान को समाप्त करने तथा धारा 24(2) में पांच वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास के नाम पर जमीन की लूट को कानूनन मान्यता दे दी गई है। पांच वर्ष के अंदर अगर अधिग्रहित भूमि का उपयोग नहीं होता है। तो उसे मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया है। अब बिना उपयोग किये हुए भी भूमि लम्बे समय तक उद्योगपति अपने पास रख सकते है। (सेक्शन 101 में संशोधन) सरकार ने खुद को नये कानून को लागू करने में पैदा होने वाली किसी भी कठिनाई को हटाने के लिए नोटीफिकेशन जारी करने की समय सीमा को दो से बढ़ाकर 5 साल कर लिया गया है ताकि किसानों की जमीन की लूट आसान बनी रहे। मोदी सरकार के गठन के बाद से ही किसानों में सरकार की तरफ से की जा रही है, बयानबाजी से यह आशंका बनी हुई थी कि सरकार द्वारा अब तक बने जनहितेषी कानूनों में बदलाव किया जाएगा, जो सच साबित हुई।
भारतीय किसान यूनियन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने हेतु देशव्यापी आन्दोलन की शुरूआत 7 जनवरी 2015 से उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन कर अपना विरोध दर्ज कराएगी। भारतीय किसान यूनियन के वार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन 16 से 18 जनवरी 2015 तक इलाहाबाद में किया जाएगा। जिसमें भारतीय किसान यूनियन भूमि अधिग्रहण बिल, फसलांे का लाभकारी मूल्य, देश में राॅ शुगर के आयात पर प्रतिबंध व विश्व व्यापार संगठन के विरोध में आन्दोलन की बडी रणनीति की घोषणा करेगी।
भवदीय
चैधरी राकेश टिकैत
(राष्ट्रीय प्रवक्ता भाकियू)
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