Friday, January 9, 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द किये जाने के सम्बंध में।

भारतीय किसान यूनियन द्वारा भूमि अधिग्रहण अधयादेश के विरोध में उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में 7 जनवरी  को जिलाधिकारी कार्यालयों में प्रदर्शन कर अधयादेश को रद्द करने की मांग करते हुए  देश के प्रधानमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन दिया गया | भाकियू के अध्यक्ष चौ.नरेश टिकैत ने  मुज़फ्फरनगर  के धरने में शामिल होकर अपना विरोध दर्ज करते हुए कहा कि किसान विरोधी कानून मंजूर नहीं है |

ज्ञापन
माननीय,
      श्री नरेन्द्र मोदी जी
      प्रधानमंत्री भारत सरकार
      साउथ ब्लाक, नई दिल्ली।
विषयः- भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द किये जाने के सम्बंध में।
मान्यवर,
देश में जब खेती योग्य जमीने किसानों से कोडियों के भाव अधिग्रहित कर उद्योगपतियों को दी जा रही थी, तो देश के किसानों ने भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध मुखर आन्दोलन किया। जिसके कारण अनेक राज्यों में किसानों और पुलिस के बीच टकराव के दौरान कई किसानों की जाने भी चली गई, लेकिन किसान इस लडाई को अंजाम तक पहुचाने के लिए जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हट रहे थे। किसानों के संघर्ष और बलिदानों के बाद भारत सरकार व देश के राजनैतिक दलों पर दबाव के कारण भारत सरकार ने 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द कर भूमि अधिग्रहण कानून ‘ उचित मुआवजे का अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण में पादर्शिता, पुनर्वास एवं पुनस्र्थापना अधिनियम 2013’ को लाया गया। 122 साल पुराने कानून के रद्द होने से किसानों को यह अहसास हुआ था कि हम भी आजाद देश के नागरिक है और अब हमारी जमीन को जबरन नहीं छीना जा सकता। इस कानून को बनाते समय दो सर्वदलीय बैठकें, बिल पर संसद में चर्चा तथा विपक्ष के दो महत्वपूर्ण संशोधन को मानते हुए सरकार ने कानून में शामिल कर लिया था। संसद की स्थायी समिति द्वारा की गयी 28 सिफारिशों में से 26 को स्वीकार कर कानून में शामिल कर किया गया था। भारतीय जनता पार्टी द्वारा भी इस बिल का समर्थन किया गया था।
भारत सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश में पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत तथा निजी कम्पनियों के लिए 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किया जाना, सामाजिक प्रभाव अध्ययन की अनिवार्यता न्यूनतम बहुफसली खेती की जमीन के अधिग्रहण करने के प्रावधान को समाप्त करने तथा धारा 24(2) में पांच वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास के नाम पर जमीन की लूट को कानूनन मान्यता दे दी गई है। पांच वर्ष के अंदर अगर अधिग्रहित भूमि का उपयोग नहीं होता है। तो उसे मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया है। अब बिना उपयोग किये हुए भी भूमि लम्बे समय तक उद्योगपति अपने पास रख सकते है। (सेक्शन 101 में संशोधन) सरकार ने खुद को नये कानून को लागू करने में पैदा होने वाली किसी भी कठिनाई को हटाने के लिए नोटीफिकेशन जारी करने की समय सीमा को दो से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया है।
भारत के किसानों को आशंका है कि इस कानून से  देश के किसानों की जबरन भूमि अधिग्रहण का रास्ता साफ होगा।
भारतीय किसान यूनियन दिनांक 07 जनवरी 2015 को जिलाधिकारी कार्यालय मुज़फ्फरनगर  उत्तर प्रदेश पर प्रदर्शन के माध्यम से मांग करती है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में लाए गए अध्यादेश को अविलम्ब रद्द किया जाए।
                                                                                                                                                         भवदीय

                                                                                                                                                      नरेश टिकैत 



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